Thursday 5 March 2020

श्रीराम जी के आदर्श व प्रेरणादायक उपदेश, भारतीय समाज में श्रीराम का चरित्र

श्रीराम जी के आदर्श व प्रेरणादायक उपदेश
भारतीय समाज में श्रीराम का चरित्र 
Ideal and inspirational teachings of Shri Ram
Character of Shriram in Indian society

श्रीराम 
दोस्तों राम जी का जन्म दिवस चैत्र नवमी को राम नवमी के रूप मे मां दुर्गा के नवरात्रों के बाद मनाया जाता है।
  श्रीराम जी हमारे एक आदर्श भगवान के रूप मे हुए जिन्होंने भारत ही नही सम्पूर्ण मानव-जाति को ज्ञान तथा आदर्श का पाठ पढाया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी का मानना था कि मनुष्य सिर्फ कर्म करने के लिए  गतिशील होता है ,उसे उसके फल की कामना नही करनी चाहिए।क्योंकि जहां फल की कामना होती है।Character of Shriram in hindi वहां फिर ज्ञान शून्य हो जाता है। भारतीय समाज में श्रीराम का चरित्र व उनके द्वारा दिये गए उपदे तथा उनके भक्त हनुमानजी का जीवन चरित्र अह भूमिका का निर्वाह करता है। मनुष्य जन्म केवल पहले किए गये अनेकों जन्मों मे पाप का प्रायश्चित करने के लिए होता है,Character of Shriram in hindi

हमे अपने स्वार्थ या भूख मिटाने के लिए दूसरे प्राणी का हनन नही करना है।बल्कि सभी प्राणियों मे ईश्वर का स्वरूप देखकर उसकी सेवा करनी चाहिए।Character of Shriram in hindi यही आदर्श भगवान राम के रहे है।

श्रीराम जी के महान आदर्श मनुष्य के लिए प्रेरणादायक 
Inspirational for the great idol of Shri Ram


1- कर्तव्य निष्ठ (Duty bound)

श्रीराम जी मर्यादा पुरुषोत्तम माने जाते है। उन्होने अपने कर्व्यों का निर्वाहन करते हुए समस्त सांसारिक भोग विलासों का त्याग किया। पिता की आज्ञों का पालन करना चाहे पथ में कितने ही कष्ठ और विपदाओं का सहन करना पढे वह सब राम ने किया। कर्मों के आधार ही जीवों तथा मानवों के प्रति विचार और भावनाओं को व्यक्त करना कोई राम से ही सीख सकता है।

2- श्री राम जी का आचरण (Conduct of Shri Ram ji)

श्रीराम जी मधुर स्वभाव एवं सरस भाषी थे, जैसे कि आप सब जानते हीं होंगे कि शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं,और बिष्णु जी ने ही संसारको मार्ग दिखाने के लिए कयी अवतार लिए और स्वंय राम भगवान के गुणों से ओतप्रोत है। परंतु आज समाज में लोगों के आचरण में मिलावट आ गई है। ऐसे में हमें भगवान राम के आचरण से पवित्रता सीखनी चाहिए, अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इस भवसागर को पार करने का एक ही मंत्र है, राम के आदर्शों का पालन करना।

3- माता-पिता का सम्मान करना (Respecting parents)

भगवान श्री राम जी ने खुद कहा है कि  कोई भगवान नही होता है,अगर होता है तो उसके स्वरूप माता-पिता ही है। श्रीराम जी ने अपने पिता दशरथ और माता कैकेयी के द्वारा 14 वर्ष का वनवास दिए जाने पर श्री राम ने उनसे एक भी सवाल न करते हुए उनकी आज्ञा का पालन किया। सोचने और मापने का अर्थ यह है कि क्या हम अपने बच्चों को यह संस्कार दे पा रहे है,क्या हमारी पौध (बच्चे) ऐसा ऐसा कर पा रहे है या कर पाएंगे। सोचने योग्य यह है कि भगवान श्री राम तो भगवान थे उन्हें पता था कि मेरे पिता अपने वचन के चलते मजबूर हैं इसलिए उन्हें उनकी आज्ञा का पालन करना ही होगा। कहते हैं इसलिए उन्होंने वनवास का रास्ता चुन लिया। उनका मानना था कि वह भगवान हो सकते है लेकिन उनके भी भगवान उनके पिता है,उगर कर्तव्यों को नहीं मानोगे तो वो भी भगवान के योग्य नही है।

4- भ्रातृ प्रेम (Fraternal love)

राम जी ने अपने भाइयों के प्राति अपनी निष्ठा से संबंधों को प्रतिकूलता दी, वो चाहते तो चौदह वर्ष वनवास के बाद वह सीधे आ करके राजगद्दी संभाल सकता था। लेकिन उनके मन मे भाई का प्रेम उमड आया और उन्होने, घर आते समय पंवटी में रुककर हनुमान जी को अयोद्धा का हाल चाल पूछने के लिए भेजा कि जाकर देख आओ अगर भरत राजा बनना चाहता है तो फिर राम अयोद्धा नही जाएगें,  क्योंकि वो नही चाहते थे कि भरत सोचे कि राम की वजह से वह राजा नही बन पाया। हनुमान जी जब वापस आये और भरत का हालचाल सुनाया तभी राम जी अयोद्धा गये।

5- गुरु का आदर करना (Respect the master)

श्रीराम का मानना था की इस संसार मे   माता पिता के बाद, गुरू ही भगवान है, वही अंधकार को मिटाकर प्रकाशित करते है। गुरु का स्थान व्यक्ति के जीवन में सबसे बड़ा होता है, उस महत्व का शायद ही कोई विवेचना भी नही कर सकता। इनके मार्गदर्शन के बिना जीवन में सफलता हासिल करना बहुत कठिन होता है। गुरू ही मोक्ष का मार्ग भी दिखाते है और संसार को देखने का नजरिया भी स्थापित कराते है। श्री राम इस बात को बकायदा समझ थे इसलिए उन्होंने आजीवन पर अपने गुरु वशिष्ट की आज्ञा का पालन किया, उन्हे अपना आदर्श मानते हुए आजीवन अपने अन्दर उनकों ज्ञान के रूप स्थित किया। जरूरत है ऐसे शिष्य प्रथा की और गुरू प्रथा की तभी जाकर सृष्टि का अस्तित्व स्थापित हो पाएगा।

7- धैर्य का होना (To be patient)

धैर्य का होना हमारे जीवन मे महत्वपूर्ण है, धैर्य नही है तो न उसका निर्माण हो पाएगा और न ही वह देश का निर्माण कर सकता है। श्रीराम जी से सीखने की जरूरत है, रामायण को अच्छे से जानने पर पता चलता है कि श्री राम ने अपने जीवन की कठिन से कठिन परिस्थिति में अपना धैर्य नहीं खोया है।अडिग रहे और अपने कर्म को ही फोकस किया, हर परेशानी में उन्होनें धैर्य से काम लिया। आज के समय में भी हर किसी को ऐसी ही होना चाहिए गुस्से के आवेश में आकर न तो किसी को कुछ गलत कहना चाहिए  न ही अपने जीवन से संबंधित कोई बड़ा फैसला लेना चाहिए। राम जी दुया को संदेश देते है कि धैर्य होगा तो सभी कार्य सफल हो सकते है,और मानवता का भी अस्तित्व बचा रहेगा अन्यथा विनाश होने में देर नही होगी।

8- किस्मत को अपनाना (Adopt luck)

राम जी का मानना था कि भाग्य होता है किन्तु तभी भाग्य भी साथ देगा जब आप उसे पाने के लिए गतिशील  रहोगे। श्री राम चाहते तो अपनी नियति को बदल सकते थे क्योंकि वो भगवान थे परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया  बल्कि उसके स्वीकार किया और उसका डटकर सामना किया। लेकिन उन्होने संदेश दिया कि दुनिया मे कर्म करने से ही भाग्य और निखर जाता है इसीलिए कर्म करो फल की इच्छा मत रखो।

श्रीराम जी के अमूल्य वचन 

(Invaluable words of Shriram)

राम एक आदर्श तथा मर्यादा पुरुषोत्तम थे जो अपनी प्रजा की सुरक्षा और खुशी के हरदम पुलकित रहते थे। उन्होंने एक बार  अपने नगर वासियों से कहा था कि हे नगर वासियों मै जो भी बात कहता हूं उसमे आपका ही कल्याण होता है। मनुष्य जीवन इसलिए मिलता है वो अपने पूर्व जन्मों के पश्चाताप कर सके। अगर तुम मेरे आदर्शो पर चलकर मेरी दी हुयी आज्ञा का पालन करो ताकी तुम्हारे जीवन मे कोई संकट न आये।

मै कोई भी बात तुम्हारे अहित की नही करता। न ही उसमे कोई मेरा स्वार्थ छुपा हुआ है।मेरे मन मे अपनी प्रजा के लिए अथाह प्रेम छिपा है उनके कष्टों का निवारण करना मेरा परम उद्देश्य है।
इसीलिए तुम बिना संकोच तथा भय को त्याग कर बिना डरे हुये मेरी कही गयी बातों का अनुसरण करो। इसी मे तुम्हारा कल्याण होगा। जो भी भक्त मेरे द्वारा कहे गये वचनो का पालन करेगा वही मेरा परम भक्त कहलायेगा तथा अपने जीवन को सद्भावना की ओर ले जायेगा।यदि कभी मुझसे कोई अभिज्ञ बात हुयी हो या तुम्हारे जीवन की खुशी से परे हो तो मुझे बेरोक टोक सकते हो। मै आपका सेवक हू जिसे आपकी रक्षा करना अपना परम कर्तव्य समझता हूं।

श्री राम ने ऐसे कई उपाखयान दिये है जो मनुष्य जीवन के लिए प्रेरणा तथा महत्वपूर्ण है । जोभी मनुष्य  उनके द्वारा दिये गये आदर्शो को अपनाता है व उस रास्ते पर चलने का संकल्प तथा प्रयत्न करता है उसका जीवन सफल हो जाता है।
मनुष्य शरीर की उपयोगिता
मनुष्य जीवन कयी जन्मों के बाद पश्चाताप करने के लिए ही प्राप्त होता है।

राम जी ने कहा था कि--बडे भाग मानुष तन पावा
अर्थात यह मनुष्य शरीर प्राप्त करना भाग्य की ही बात है। क्योंकि इसी जीवन से मनुष्य अपने कर्मो का पश्चाताप करके मोक्ष प्राप्त कर सकता है।तथा वैकुण्ठ लोक को जा सकता है।
हमारे सभी ग्रंथों मे यह कहा गया है कि मनुष्य देवताओं से भी कठिन जीवन है जो बडी कठिनता से प्राप्त होता है।जिस प्राणि ने भी इसका अपमान किया उसे आखिर मे नर्क ही प्राप्त होता है।

श्रीराम ने बताया स्वर्ग दुखदायी है

मनुष्य सोचता है कि मुझे स्वर्ग प्राप्त हो जाये परन्तु यह इतना आशान नही है , इसका मार्ग बहुत दुखदायी मै इसमे आने वाले कठिन परिश्रम आदमी को झकझोर देता है।

अतः जो लोग मनुष्य जीवन पाकर भी विषय भोगों मे लगा रहता है।वह कभी स्वर्ग को प्राप्त नही कर पाता। फिर से उसे जन्म लेकर इस मृत्यु लोक मे विचरण करना पढता है।क्योकि कहा गया है कि स्वर्ग का भोग भी जादा सुखदायी नही है अपितु वह भी कुछ समय बाद दुखदायी होता है वह सब मनुष्य के कर्मो पर होता है

मनुष्य शरीर का दुरुपयोग का दुरुपयोग नही करना चाहिए 

जो भी मनुष्य इस शरीर का दुरुपयोग करता है। उसका फिर किसी भी जन्म मे उद्धार नही हो सकता जो व्यक्ति इसे सिर्फ भोग-विलास तक ही सीमित रखता है , इस जीवन की उपयोगिता नही समझता उसे आखिरी समय मे भगवान  को जवाब जरूर देना पड़ता है कर्मो का हिसाब, जिसने जैसा कर्म किया होगा एक एक पल का हिसाब लिया जाता है।
यह अविनाशी जीवन  ( अंडज, स्वेज, जरायु, और उद्भिज्ज, ) चार खानों मे खानों और चौरासी लाख योनियों मे विचरण करता है।जो व्यक्ति मोह माया भेद समय को व्यतीत करता है वह फिर से इसी जीवन मे विचरण करता रहता है।

सुख प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ कर्मअगर मनुष्य सुख चाहता है तो उसे भगवद् भक्ति का मार्ग अपना पडेगा क्योंकि सांसारिक भोगों मे असली सुख नही है।यही एक माध्यम है जीवन मुक्ति का। जिसे उसे एक बार अपना ही पडेगा नही तो हर जीवन मे कष्ट ही भोगेगा।

राम जी ने कहा कि यदि सुख चाहते हो तो मेरे द्वारा कहे गये वचनो का पालन करो । हे प्रजा वासियों मेरे मार्ग पर चलने से मोक्ष प्राप्त होता है। मेरा मार्ग सुलभ तथा सुखदायक है। वेद और पुराणों ने इसकी महिमा गायी है।

श्रीराम ने बताई भक्ति की महिमा
Shriram told the glory of devotion

भक्ति की महिमा वही बखान कर सकता है जिसके हृदय मे अपने स्वामी के प्रति अथाह प्रेम तथा आदर्श छिपा हुआ हो। भक्ति का मार्ग सुखद होता है यह अमृत की खान है जो इसमे एक बार डूब जाता है, उसे फिर सांसारिक सुखों की परवाह नही रहती है।

सन्तों की संगती मे जा करके इसे प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि संतो के हृदय मे स्वयं भगवान वास करते है। भगवान को प्राप्त करने का संत संगति ही एक मात्र मार्ग है इसे अपनाकर मनुष्य उस परम धाम को पाने सकता है।

 श्रीराम ने बताया ज्ञान का उद्देश्य
Shriram told the purpose of knowledge

ज्ञानी होना कठिन नही है पर ज्ञान का विस्तार करना बहुत ही कठिन कार्य है। क्योंकि यह उसे ही प्राप्त होता है जिसके हृदय मे ईश्वर का वास हो और वही ज्ञान उसका भविष्य तय करता है।

 श्रीराम ने बताया दान-पुण्य का महत्व 

राम जी ने कहा है कि पुण्य वह नही कि तुमने लोगों की सेवा की या फिर पूरे जन्म भगवान की भक्ति की बल्कि वह है कि जिसने सच्चे हृदय से अपने विवेक तथा मन ,कर्म, वचन,से ब्राह्मणों तथा संतो के चरणों की सेवा की क्योकि वही पुण्य है वही मुक्ति का द्वार है। उस व्यक्ति पर मुनी तथा देवता भी प्रसन्न रहते है।

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