Sunday 25 April 2021

Pradosh vrat mahatm in hindi शिवजी की उपासना, कष्टों को हरने तथा सन्तान प्राप्ति के लिए अभीष्ट प्रदोष व्रत विधि व माहात्म्य

Pradosh vrat mahatm in hindi शिवजी की उपासना, कष्टों को हरने तथा सन्तान प्राप्ति के लिए अभीष्ट प्रदोष व्रत विधि व माहात्म्य 

नमस्कार दोस्तों हम बत कर रहे है प्रदोष व्रत की हमारे धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा तथा सन्तान प्रदान करनेवाला होता है।यह व्रत हर माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है।और यह भी मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं, और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं।संसार में जो भी प्राणी अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। प्रदोष व्रत क्यों रखा जाता है? प्रदोष व्रत कैसे करें?प्रदोष व्रत के दिन क्या खाना चाहिए?आदी सभी सवालों के जवाब आपके लिए हाजिर है

यह व्रत भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिए प्रत्येक मास की कृष्ण - शुक्ल दोनों पक्षों में त्रयोदशी को किया जाता है । शिव पूजन और रात्रि भोजन के संयोग को प्रदोष कहते है । (शिवपूजानक्त भोजनात्मकं प्रदोषम् ') जो मनुष्य प्रदोष के समय भक्ति भाव से भगवान शंकर का ध्यान पूजन करता है । उसके धन - धान्य , स्त्री - पुत्र व सुख सम्पति की सदैव वृद्धि होती रहती है । इसका काल सूर्यास्त से २ घटी अर्थात ४८ मिनट रात्रि बीतने तक है । किसी मत से तीन घटी का समय भी कहा गया है । कृष्ण पक्ष के प्रदोष में परविद्धा त्रयोदशी व शुक्ल पक्ष के प्रदोष में पूर्वविद्धा त्रयोदशी ग्रहण करनी चाहिए । यदि कृष्ण पक्ष में परविद्धा त्रयोदशी प्राप्त न हो तो पूर्वविद्धा को ही ग्रहण करना चाहिए ।

प्रदोष व्रत का महत्व 

प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के सभी दोषों का निवारण होता है।सुख समृद्धि का वास होता है। व्रत को विधि-विधान के साथ करने पर शिवजी अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाते हैं,सन्तान प्राप्ति और उनपर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। इस तिथि पर केवल शिवजी की ही नहीं बल्कि चंद्रदेव की भी अराधना की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सबसे पहला प्रदोष व्रत चंद्रदेव ने ही रखा था। इस व्रत के प्रभाव से भगवान शिव प्रसन्न हुए थे और चंद्र देव को क्षय रोग से मुक्त किया था।

यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों के लिए उत्तम फलप्रद है । यद्यपि यह व्रत शिव की प्रसन्नता के लिए विशेष व्रत है किन्तु कामना भेद से इसमें यह विशेषता है कि यदि पुत्र की कामना हो तो शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उससे आरम्भ करके फल प्राप्त होने तक व्रत करने से श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति होती है । इसी प्रकार ऋण समाप्ति की कामना से जिस त्रयोदशी को मंगलवार हो उससे व्रत आरम्भ करना चाहिए ।

विशेष महत्व --

सौभाग्य , समृद्धि व स्त्री की कामना हो तो जिस त्रयोदशी को शुक्रवार हो उससे आरम्भ करने से इच्छा पूर्ण होती है । अभीष्ठ सिद्धि की कामना हो तो जिस त्रयोदशी को सोमवार हो तथा आयु आरोग्य आदि की कामना के लिए जिस त्रयोदशी को रविवार हो , उससे आरम्भ करके प्रत्येक शुक्ल - कृष्ण त्रयोदशी को एक वर्ष तक व्रत करें । 

प्रदोष व्रत का विधि-विधान --

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करके देशकाल का स्मरण कर (" मम अमुकामुककामनयाप्रदोषव्रतमहं करिष्ये । ") यह संकल्प करके सूर्यास्त के समय पुनः स्नान करें और शिवजी के समीप बैठकर 

(भवाय भव नाशाय महादेवाय धीमते । रुद्राय नीलकंठाय शर्वाय शशिमौलिने ॥ उग्रायो ग्राघ नाशाय भीमाय भयहारिणे । ईशानाय नमस्तुभ्यं पशूनां पतये नमः ॥) 

इस मन्त्र से प्रार्थना करके सामर्थ्यानुसार पूजन करें । नैवद्य में घी , शक्कर , जौ के सत्तू का भोग लगायें । इसके बाद आठों दिशाओं में आठ दीपक रखकर प्रत्येक के स्थापन में आठ बार नमस्कार करें । 

उसके बाद (धर्मस्त्वं वृषरूपेण जगदानन्द कारक । अष्टमूर्ते रधि ष्ठानमतः पाहि सनातन ॥) 

इस मन्त्र से नन्दीश्वर को जल और दूर्वा अर्पण कर पूजन करें । अन्त में उसको स्पर्श करके- (ऋणरोगादिदारिद्र्यपाप क्षुदपमृत्यवः । भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥ पृथिव्यां यानि तीर्थानि सागरान्तानि यानि च । अण्डमाश्रित्य तिष्ठन्ति प्रदोष गोवृषस्य तु ॥ स्पृष्ट्वा तु वृषणौ तस्य श्रृङ्गमध्ये विलोक्य च । पुच्छे च ककुदं चैव सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥) 

इस पूरे मन्त्र से शिव , पार्वती व नन्दिकेश्वर की प्रार्थना करें ।

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