Tuesday 7 March 2023

Hindi Grammar Part-2 भाषा के घटक,व्याकरण की परिभाषा व विभाग, देवनागरी लिपि का विकास

Hindi Grammar Part-2 भाषा के घटक,व्याकरण की परिभाषा व विभाग, देवनागरी  लिपि का विकास

भाषा के घटक-components of language

(1) ध्वनि - मानव मुख से निकलने वाली प्रत्येक स्वतंत्र आवाज़ 'ध्वनि' कहलाती है। भाषा के मौखिक रूप में केवल ध्वनियों का ही प्रयोग होता है।

(2) वर्ण - वह छोटी से छोटी ध्वनि, जिसके और खंड न हो सकें, 'वर्ण' कहलाती है। जैसे- अ, ई, उ, क्, ख्, ल्, ह आदि ।

(3) शब्द - वर्णों के स्वतंत्र एवं सार्थक समूह को शब्द कहते हैं। जैसे- क् + अ + ल् + अ + म् + अ = कलम

(4) पद- प्रचलित रूप हर शब्द, शब्द होता है । जैसे- मोहन, बगीचा, पढ़ाई आदि। परंतु जब उन्हीं शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कर दिया जाता है, तो वे 'पद' कहलाते हैं। शब्दकोष में शब्दों के अर्थ मिलते हैं, पदों में नहीं ।

(5) वाक्य- शब्दों का ऐसा समूह, जो एक निश्चित भाव का बोधक होता है, वाक्य कहलाता है।

व्याकरण (Grammar)

'व्याकरण' शब्द संस्कृत का है। हमारी हिन्दी भाषा का जन्म भी संस्कृत से ही हुआ है। इसमें तीन शब्द हैं - वि + आ + करण। इन तीनों शब्द का अर्थ इस प्रकार है-वि- विशेष प्रकार से, आ-भली-भाँति, करण-करना अर्थात् व्यवस्थित या विधिवत् क्रम रूप में रखना अर्थात् विचार या भाव को किन्हीं विशेष नियमों के अनुसार व्यवस्थित करके शुद्ध रूप में बोलते या लिखते हैं और ये नियम उस भाषा को शुद्ध करने वालों के रूप में सर्वमान्य होते हैं तो इन नियमों का संविधान ही व्याकरण कहलाता है। इसलिए प्रत्येक भाषा का अपना व्याकरण होता है, दूसरी भाषा के व्याकरण के समान नहीं होता है । व्याकरण वह साधन है, जो भाषा को अनुशासन में रखता है। व्याकरण भाषा को शुद्ध और दीर्घजीवी बनाता है।

परिभाषा-Definition 

वह शास्त्र है जिसके नियमों एवं अनुशासन का पालन करके भाषा को शुद्ध रूप में बोल सकें, पढ़ सकें और लिख सकें। भाषा को शुद्ध बोलने, पढ़ने और लिखने के लिए व्याकरण का जानना आवश्यक है।

व्याकरण के विभाग-department of grammar

ध्वनि भाषा की लघुतम इकाई है, जिसका प्रयोग ध्वनि-चिह्न दोनों के लिए होता है। ध्वनि-चिह्न का ही दूसरा नाम वर्ण है । वर्णों से शब्द बनते हैं। इन्हीं शब्दों को जब वाक्यों में प्रयुक्त किया जाता है, तो वे पद कहलाते हैं। पदों के व्यवस्थित प्रयोग से ही सार्थक वाक्यों की संरचना होती है। अत: हम कह सकते हैं कि व्याकरण के मुख्य रूप से चार विभाग हैं-

(1) वर्ण - विचार - इसके अंतर्गत वर्णों के प्रकार, उच्चारण, वर्गीकरण, संयोग, संधि आदि के बारे में विचार किया जाता है।

(2) शब्द - विचार - शब्द-विचार के अंतर्गत शब्दों के भेद, उत्पत्ति, व्युत्पत्ति, रचना आदि के बारे में जानकारी मिलती है।

(3) पद - विचार - पद- विचार के अंतर्गत संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, अव्यय, निपात आदि पदों के स्वरूप और प्रयोग पर विचार किया जाता है।

(4) वाक्य- विचार - वाक्य-विचार में वाक्यों के भेद, उनके संबंध, वाक्य- संश्लेषण, विश्लेषण, रचनांतरण, विराम चिह्न आदि के बारे में विचार किया जाता है।

लिपि-Script

लिपि का शाब्दिक अर्थ है 'लीपना या पोतना । अपनढ़ व्यक्ति के लिए कागज के उज्ज्वल पृष्ठ पर जो कुछ लिखा जाता है वह लीपना - पोतना ही है परंतु पढ़े-लिखे लोगों के लिए वे ध्वनि चिह्न ही भाव और विचार के बोधक होते हैं। अतः यह कहना बिल्कुल ठीक ही है कि मौखिक भाषा की मूल ध्वनियों को लिखकर प्रकट करने के लिए निश्चित किए गए चिह्नों को लिपि कहते हैं।

हिंदी और संस्कृत की लिपि देवनागरी, अंग्रेज़ी भाषा की लिपि रोमन, उर्दू की लिपि फ़ारसी तथा पंजाबी की लिपि गुरुमुखी है। अन्य भाषाओं की लिपियाँ बायीं ओर से दायीं ओर को लिखी जाती हैं। केवल फ़ारसी लिपि ही दायीं ओर से बांयी ओर को लिखी जाती है। हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत, मराठी, नेपाली और कोंकणी भाषाएँ भी देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। सिंधी भाषा फ़ारसी में लिखी जाती है।

देवनागरी लिपि का विकास-Development of Devanagari script-

देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है । ब्राह्मी से देवनागरी तक पहुँचने में देवनागरी लिपि को चार चरणों से गुजरना पड़ा।

> ब्राह्मी से गुप्त लिपि विकसित हुई।

> गुप्त लिपि से कुटिल लिपि बनी।

> कुटिल लिपि से प्राचीन नागरी लिपि का विकास हुआ।

> प्राचीन नागरी से वर्तमान देवनागरी लिपि विकसित हुई।

देवनागरी लिपि का विकास पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में माना जाता है।

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