Wednesday 28 April 2021

Rahudosh niwaran upay and kawachराहु ग्रह शान्तिके उपाय,दोष प्रभाव एवं राहुकवच स्त्रोत

Rahudosh niwaran upay and kawachराहु ग्रह शान्तिके उपाय,दोष प्रभाव एवं राहुकवच स्त्रोत 

दोस्तों राहु ग्रह को प्रबल माना गया है।ज्योतिष शास्त्र में राहु को छाया ग्रह माना गया है।हमारी कुंडली में राहु की स्थिति खराब होने पर वह हमारे जीवन को कमजोर व प्रभावित करता है।अगर हम सही तरीके से राहु दोष के उपाय करते है तो राहु हमें हर कार्य में सफलता देता है। लेकिन कुछ व्यक्ति इसको सिर्फ अपवाद मानता है वह व्यक्ति ऐसे निर्णय लेने लगता है, जिससे ना सिर्फ उस पर बल्कि परिवार को भी दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। पूरे घर में बुरी भावनाएँ प्रवेश करेगी,और बुरी आत्माओं का आवास होगा। अगर आपके और आपके परिवार के किसी भी सदस्य की कुण्डली में राहु वक्र चल रहा है तो आप इस राहु कवच का पाठ नित्य कीजिए आपके जीवन में खुशियाँ आ जाएगी ।

कुंडली में राहु दोष के प्रभाव-

जब किसी की कुंडली में राहु दोष का प्रभाव बढता है तो जीवन में सभी कार्य विपरीत दिशा की ओर  बडता है।राहु दोष होने से मानसिक तनाव बढ़ता है।पती-पत्नी में मतभेद बढता है। आर्थिक संकट,तालमेल में कमी आना बच्चों का पढाई में व्यवधान होता है।शास्त्रों में कहा है कि राहु का शुभ प्रभाव व्यक्ति को रंक से राजा बना देता है, वहीं इसका अशुभ फल मिलने से व्यक्ति राजा से रंक बन जाता है। इसीलिए अपनी कुंडली में राहु को मजबूत करने के लिए राहु का उपाय करना अति आवश्यक है।

अथः राहुकवचम् 

विनियोग -  अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः । अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं | नमः शक्तिः । स्वाहा कीलकम् । राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।। 

श्लोक - १

प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ।। 

सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ।।

श्लोक -२

निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः । 

चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ।। 

श्लोक -३

नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम । 

जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ।। 

श्लोक -४

भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ । 

पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुतुदः ।।

श्लोक -५

कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः । 

स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ।। 

श्लोक -६

गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः । 

सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण : ।। 

श्लोक -७ 

राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो । 

भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् । 

प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु ।

रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ।।

इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं ।।

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