Sunday 12 April 2020

गीता की 11महत्वपूर्ण बातें और गीतासार के 18 सुविचार जो सिखाती हैं जीवन जीने और सफलता की कला

गीता की 11महत्वपूर्ण बातें और गीतासार के 18 सुविचार 
जो सिखाती हैं जीवन जीने और सफलता की कला
11 important points of Gita and 18 good thoughts of Gitaasar
 Who teach the art of living and success
गीता-ज्ञान

श्लोक-
विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:।
निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।

अर्थात-
जो मनुष्य सभी इच्छाओं व कामनाओं को त्याग कर ममता रहित और अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसे ही शांति प्राप्त होती है।
दोस्तों संस्कृत भाषा भारत ही नहीं  विश्व की प्राचीनतम भाषा होने के साथ ही सभी भाषाओं की जननी है।Sanskrit sloks with meaning in hindi  संस्कृत भाषा में पग-पग पर विश्व कल्याण और मानवता का पाठ पढ़ाने वाले श्रेष्ठ वाक्यांश समाहित है। व्यक्ति के मार्गदर्शन के लिए तथा सभी पक्षों के विकस के लिए (संस्कृत श्लोक,संस्कृत में सूक्तियां, संस्कृत में सुविचार,सुभाषितानी) आदि कयी ऐसे महान विचार हमारे ग्रंथों से लिये गये है। अत: इसी प्रकार संस्कृत श्लोक ज्ञानवर्धक और शिक्षा प्रद कथनों को इस "संस्कृत सुभाषितानि" में हिन्दी अर्थ, संस्कृत भावार्थ सहित समाहित करने का छोटा सा प्रयास किया गया है।Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं।

गीता हमारे हिन्दू धर्म का एक ऐसा शास्त्र है,जो पूरे विश्व में विख्यात है,  अनेकों भाषा में इसका अनुवाद हुआ है,और सभी विश्व के लोग इसके ज्ञान से अपने जीवन को धन्य,पावन, पवित्र कर रहे है।
गीता एक ऐसा पवित्र और पावन ग्रंथ है जिसके आदर्शों पर चलकर मनुष्य न केवल खुद का कल्याण कर सकता है, बल्कि वह संपूर्ण मानव जाति का कल्याण करता है।

यह पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता न केवल धर्म का उपदेश देती है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। जीवन का अर्थ व सार बताती है। महाभारत के युद्ध के पहले अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। पूरी गीता कर्म क्षेत्र पर आधारित है कि केवल भाग्य भरोसे रहने से कुछ नही होता है, उसके लिए कर्म सर्वश्रेष्ठ है। 

गीता के उपदेशों पर चलकर गीता  न आदर्शोंगीता का ज्ञान, मानव जीवन केवल हम स्वयं का, बल्कि समाज का कल्याण भी कर सकते हैं।व्यक्ति इसके ज्ञान से सफलताओं,  लक्ष्यों, कामयाबी, तथा ऊंचाइयों को छूते है।

महाभारत के युद्ध में जब पांडवों और कौरवों की सेना आमने-सामने होती है तो अर्जुन अपने बुंधओं को देखकर विचलित हो जाते हैं। तब उनके सारथी बने श्रीकृष्ण उन्हें उपदेश देते हैं। ऐसे ही वर्तमान जीवन में उत्पन्न कठिनाईयों से लडऩे के लिए मनुष्य को गीता में बताए ज्ञान की तरह आचरण करना चाहिए। इससे वह उन्नति की ओर अग्रसर होगा। समस्त विश्व के प्रेरणास्रोत, प्रेरणादायक विचार हम आपके लिए लेकर आए है, जो आपके जीवन को सफलताओंऔर ऊंचाइयों की ओर ले जाएगा।

गीता की 11महत्वपूर्ण विचार
11 Important Thoughts of the Gita
Geeta ke suvichar

1- मन को स्थिरता देना-
गीता में कहा गया है कि अगर हमने अपने मन पर काबू कर लिया तो समझो,जीवन की हर समस्या का समाधान हो गया, मन ही हमारी बाधा है और मन ही पथगामी भी है। इसलिए इसकी लगाम ढीली नहीं छोडनी चाहिए।

2- क्रोध पर नियंत्रण
क्रोध ही समस्या को घोतक है,कभी-कभी हम ऐसा कर्म भी कर जाते है ,जो मानवता के विरूद्ध है।
गीता में कहा गया है क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाते हैं। जब तर्क नष्ट होते हैें तो व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है। इसीलिए इस शत्रु पर विजय पानी अति आवश्यक है।

3- समय का नियोजन
समय की उपयोगिता मनुष्य के लिए परम आवश्यक है,  जिसने समय के साथ कार्य को पूर्णता दी है,वह न कभी अनैतिक कार्य करता है,न किसी द्वंद्व मे फसता है।

4- नजरिया से बदलाव
जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है। इससे वह इच्छित फल की प्राप्ति कर सकता है।

5- मन पर नियंत्रण आवश्यक
मन पर नियंत्रण करना बेहद आवश्यक है। जो व्यक्ति मन पर नियंत्रण नहीं कर पाते, उनका मन उनके लिए शत्रु का कार्य करता है। बनते काम भी बिगड जाते है।

6- आत्म मंथन करना चाहिए
गीता में कहा गया है कि किसी भी कार्य को शुरूकरने से पहले आत्म-मंथन (उस कार्य के प्रति सोचना) आवश्यक है जिससे कार्य मे भी सफलता मिलेगी और वह नियत समय पर भी पूर्ण हो पाएगा। इसीलिए व्यक्ति को आत्म मंथन करना चाहिए। आत्म ज्ञान की तलवार से व्यक्ति अपने अंदर के अज्ञान को काट सकता है। जिससे उत्कर्ष की ओर प्राप्त होता है।

7- सकारात्मक सोच से निर्माण
अगर अधिक पाना है और सबसे आगे रहना है तो सोच को अधिक तीव्र करना होगा, सकारात्मक सोच से ही मस्तिष्क का विकास हो पाएगा।
मुनष्य जिस तरह की सोच रखता है, वैसे ही वह आचरण करता है। अपने अंदर के विश्वास को जगाकर मनुष्य सोच में परिवर्तन ला सकता है। जो उसके लिए और देश तथा समाज के लिए काल्याणकारी होगा।

8- कर्म का फल
गीता का महा उपदेश यही था कि फल की अभिलाषा वही करता है जो कर्म नहीं करना चाहता लेकिन जो कर्म को ही लक्ष्य बनाता है उसे सब-कुछ  प्राप्त स्वतः ही हो जाता है।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी यही कहते हैं मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे उसके अनुरूप ही फल की प्राप्ति होती है। इसलिए सदकर्मों को महत्व देना चाहिए।

9- मन को ऐसे करें नियंत्रित
कहावत आपने सुनी होगी (मन तो बन्दर है)  जिसके अन्दर स्थायित्व नही है, वह चंचल है, उसको काबू करना परम आवश्यक है। मन चंचल होता है, वह इधर उधर भटकता रहता है। लेकिन अशांत मन को अभ्यास से वश में किया जा सकता है।
कहा भी गया है--
{मन के हारे हार है,}
{मन के जीते जीत,}

10- सफलता प्राप्त करने की नीति 
गीता को सफलता की कुंजी भी बताया गया हो।जिसके मनन से मनुष्य जो चाहे प्राप्त कर सकता है, यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे तो उसे सफलता प्राप्त होती है।

11- तनाव से मुक्ति
गीता में तनाव से मुक्ति के बारे में भी बताया गया है,क्योंकि तनाव व्यक्ति की सोच, समझ,और ज्ञान को नष्ट कर दाता है। जो प्रकृति के विपरीत कर्म करने से मनुष्य तनाव युक्त होता है। यही तनाव मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। केवल धर्म और कर्म मार्ग पर ही तनाव से मुक्ति मिल सकती है। बाकी समस्त संसार तो तनाव से भरा हुआ है।

गीता सार के 18 महत्वपूर्ण बातें 
18 important points of Gita essence
Geeta Sar

१- सांसारिक मोहके कारण ही मनुष्य ' मैं क्या करूँ और क्या नहीं करूँ ' - इस दुविधामें फँसकर कर्तव्यच्युत हो जाता है । अतः मोह या सुखासक्तिके वशीभूत नहीं होना चाहिये । 

२- शरीर नाशवान् है और उसे जाननेवाला शरीरी अविनाशी है - इस विवेकको महत्त्व देना और अपने कर्तव्यका पालन करना - इन दोनोंमेंसे किसी भी एक उपायको काममें लानेसे चिन्ता - शोक मिट जाते हैं । 

३- निष्कामभावपूर्वक केवल दूसरोंके हितके लिये अपने कर्तव्यका तत्परतासे पालन करनेमात्रसे कल्याण हो जाता है । 

४- कर्मबन्धनसे छूटनेके दो उपाय हैं - कर्मोंके तत्त्वको जानकर निःस्वार्थभावसे कर्म करना और तत्त्वज्ञानका अनुभव करना । 

५- मनुष्यको अनुकूल - प्रतिकूल परिस्थितियोंके आनेपर सुखी - दुःखी नहीं होना चाहिये ; क्योंकि इनसे सुखी - दु : खी होनेवाला मनुष्य संसारसे ऊँचा उठकर परम आनन्दका अनुभव नहीं कर सकता ।

६- किसी भी साधनसे अन्त : करणमें समता आनी चाहिये । समता आये बिना मनुष्य सर्वथा निर्विकार नहीं हो सकता । 

७- सब कुछ भगवान् ही हैं - ऐसा स्वीकार कर लेना सर्वश्रेष्ठ साधन है । 

८- अन्तकालीन चिन्तनके अनुसार ही जीवकी गति होती है । अतः मनुष्यको हरदम भगवान्का स्मरण करते हुए अपने कर्तव्यका पालन करना चाहिये , जिससे अन्तकालमें भगवान्की स्मृति बनी रहे । 

९- सभी मनुष्य भगवत्प्राप्तिके अधिकारी हैं , चाहे वे किसी भी वर्ण , आश्रम , सम्प्रदाय , देश , वेश आदिके क्यों न हों । 

१०- संसारमें जहाँ भी विलक्षणता , विशेषता , सुन्दरता , महत्ता , विद्वत्ता , बलवत्ता आदि दीखे , उसको भगवानका ही मानकर भगवान्का ही चिन्तन करना चाहिये । 

११- इस जगत्को भगवान्का ही स्वरूप मानकर प्रत्येक मनुष्य भगवान्के विराट्प के दर्शन कर सकता है । 

१२- जो भक्त शरीर - इन्द्रियाँ - मन - बुद्धिसहित अपने आपको भगवानके अर्पण कर देता है . वह भगवानको प्रिय होता है । 

१३- संसारमें एक परमात्मतत्त्व ही जाननेयोग्य है । उसको जाननेपर अमरताकी प्राप्ति हो जाती है ।

१४- संसार - बन्धनसे छूटनेके लिये सत्त्व , रज और तम - इन तीनों गुणोंसे अतीत होना जरूरी है । अनन्यभक्तिसे मनुष्य इन तीनों गुणोंसे अतीत हो जाता है । 

१५- इस संसारका मूल आधार और अत्यन्त श्रेष्ठ परमपुरुष एक परमात्मा ही हैं - ऐसा मानकर अनन्यभावसे उनका भजन करना चाहिये । 

१६- दुर्गुण - दुराचारोंसे ही मनुष्य चौरासी लाख योनियों एवं नरकोंमें जाता है और दुःख पाता है । अतः जन्म मरणके चक्रसे छूटनेके लिये दुर्गुण - दुराचारोंका त्याग करना आवश्यक है । 

१७- मनुष्य श्रद्धापूर्वक जो भी शुभ कार्य करे उसको । भगवान्का स्मरण करके , उनके नामका उच्चारण करके ही आरम्भ करना चाहिये । 

१८- सब ग्रन्थोंका सार वेद हैं , वेदोंका सार उपनिष हैं , उपनिषदोंका सार गीता है और गीताका सार भगवान्व शरणागति है । जो अनन्यभावसे भगवान्की शरण हो जा है , उसे भगवान् सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर देते हैं ।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य-----

0 comments: