भोजन का महत्व उपयोगिता, लाभ एवं हानी
भोजन के सकारात्मक प्रभाव क्या है?
Importance, benefits and losses of food
What is the positive effect of food?
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अन्न प्राणियों का प्राण है , परन्तु अयुक्तिपूर्वक सेवन करने पर वह प्राणघातक हो जाता है । हाथी से लेकर चींटी तक सब प्राणी भोजन के सहारे ही जीते हैं । शूरवीर की शूरता और न्यायाधिपति की विचारशीलता भोजन के अभाव में विलीन हो जाती है ।
(अन्नमूलं बलं पुंसां बलमूलं हि जीवनम् ।)
भोज्य पदार्थ ही बल - रक्षा या शरीर - रक्षा का मूल कारण है और जीवन बलाधीन है । भोजन का मुख्य कार्य शरीर को बढ़ाना , क्षतिपूर्ति करना तथा उष्णता एवं शक्ति बनाये रखना है । इसलिये भोजन में चारों गुण वाले पदार्थ होने चाहिए ।
(आहार शुद्धौ आत्मसंशुद्धिः ।)
1- सन्तुलित भोजन --
(मात्राप्रमाणं निर्दिष्टिं सुखं यावत् विजीर्यते ।)
अर्थात--
जो सुखपूर्वक पच जावे वही , उपयुक्त मात्रा में अर्थात् सन्तुलित , भोजन है । बहुमूल्य पौष्टिक भोजन भी यदि सुपाच्य नहीं है , रसोत्पति में समर्थ नहीं है तथा शरीर का अंग नहीं बन पाता तो व्यर्थ ही है ।
2- अनाज , दालें तथा शाकों के छिलके--
चोकर सहित आटा और हाथ का कुटा चावल खाना चाहिए । गेहूँ और चावल की भूसी निकाल देने से अनाज का बहुत मूल्यवान् भाग नष्ट हो जाता डालकर पकाना चाहिए कि अच्छी प्रकार भी जाये और मांड भी न है । चावल की माँड निकालना मूर्खतापूर्ण कार्य है । चावलों में इतना पानी फेंकनी पड़े । अन्न और दालों के छिलकों में प्राकृतिक पाचन होने का गुण रहता है । दालों और हरे शाकों ( सब्जियों ) के छिलके नहीं फेंकने चाहिए ।
दालों , के छिलके में लोह तत्व होता है और शाकों के छिलकों में विटामिन ए होता है । दूसरे , ये छिलके मलबन्ध ( कब्ज ) को दूर करते हैं । इन कारणों से छिलकों को अवश्य खाना चाहिए ।
3- अधिक पकाना --
अधिक पकाने या उबालने से कोई वस्तु सुपच बन जाती है और कोई वस्तु उल्टे दुष्पच बन जाती है । जैसे गेहूँ या दाल अधिक पकाने से सुपच हो जाती है , परन्तु दूध या शाक ( सब्जियां ) अधिक पकाने से दुष्पच और गुणहीन हो जाते हैं । शाकों को उबालकर पानी फेंक देने पर विटामिन और खनिज द्रव्य पानी के साथ फेंक दिये जाते हैं तथा जो कुछ बच भी जाता है , वह तेज छोंक से नष्ट हो जाता है । छोंक लगाने की प्रथा भी गलत है । इससे भी घी जलकर नष्ट हो जाता है और सब्जियों तथा मसालों के विटामिन और खनिज द्रव्य जल जाते हैं । घी और मसालों को पकते हुए शाक या दाल में डालना सबसे अच्छा है ।
4- अचार , चटनी आदि --
वास्तविक रुचि तो कड़ाके की भूख में ही होती है । भूख में रूखी - सूखी रोटी भी स्वादु लगती है । कृत्रिम रुचि मसाले , अचार , मुरब्बा , चटनी आदि से होती है । ये शरीर के लिए आवश्यक नहीं है , इस कारण बहुत कम मात्रा में ही खाने चाहिए । कागजी नींबू , अदरक और दही रुचि बढ़ाने वाले पदार्थों में सबसे उत्तम हैं , साथ ही शरीर को लाभ भी पहुंचाते हैं ।
5- अहितकर भोजन --
अहितकर भोजन नहीं करना चाहिए । जो भोजन अच्छी प्रकार नहीं बनाया गया हो , बनाने में कच्चा रह गया हो या जल गया हो , बासी हो , सड़ गया हो या विकृत हो गया हो , वह अहितकर भोजन है । ठण्डा , बासी भोजन तो हानिकारक होता ही है , अत्यन्त गर्म खाने से भी मुँह जल जाता है और दांत दुर्बल हो जाते हैं । इसलिए भोजन को मन्दोषण खाना चाहिए ।
अत्यन्त गर्म भोजन करने से बल का नाश , शीतल तथा शुष्क अन्न खाने से देर में पाचन और जलादि से अत्यन्त गीला अन्न खाने से ग्लानि उत्पन्न होती है । अतएव सर्वदा न अत्यन्त उष्ण , न अत्यन्त शीतल , न अत्यन्त शुष्क और न अत्यन्त गीला अन्न खाना चाहिए । "
अत्यन्त शीघ्रता से भोजन करने पर भोज्य पदार्थों के गुण तथा दोषों का परिज्ञान नहीं हो पाता तथा अत्यन्त धीरे - धीरे भोजन करने से भोज्य पदार्थ शीतल और हृदय को अप्रिय हो जाता है ।
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