हार गया डर से कोरोना (कोरोना पर कविता)
Corona lost out of fear
Poetry for corona in hindi ,Covid-19 poem
मानव की इस जिद्दी जात ने आखिर, कोरोना को भी हरा दिया,
अपनी श्रेष्ठता का मुखौटा उसने लुटने न दिया।
एक समय था जब हुआ जन्म कोरोना का,
अपनी मौत हर मानव को सामने दिखने लगी।
सहम गया सब कुछ पल-भर के लिए,
धरती,पर्वत,गगन तारे और सूरज की रोशनी भी हार गयी।
हार गयी हर वनस्पति और हार गये थे सपने सबके।
फिर भी ना हारा कभी मानव का हौसला,
इसीलिए तो कोरोना को हरा दिया ।
उम्मीदों की किरण जगी हुई है मन में,
कल फिर से वही समय लौट आएगा,
लौट आएगा बच्चों का बचपन ,
खुलेंगी बाजारों की रौनक फिर से,
फिर से लोगों में दिखेगा फैशन का खुमार ,
फिर दिखेगी चाट,पकोडों की ठेलियाँ,
बसों में न होगी, खिसकने की भी जगह,
पिक्चर हांल में भी दो प्रेमी गुटरगूं करते दिखेंगे,
फिर से औरतें अपनी कहा सुनी टोलियों में करेंगी,
सूना पार्क भी बच्चों की किलकारी से गूंज उठेगा,
लौट के आएगा वो दिन,
तब न कोई डर सताएगा
तब न होगा खौफ किसी बीमारी का,
आखिर उसने करोना को जो हरा दिया।
खिलेंगे फिर बच्चों के चेहरे,
स्कूल के पुराने दोस्तों से जो मिलना होगा।
फिर से जाम रहेगा सडकों पर,
जब छुट्टी के समय बच्चे सडकों पर दौड़ेंगे,
मेलों में भीड, बढेगी फिर से,
सडकों की रौनक खिल उठेगी,
खिल उठेंगे फिर से सबके चेहरे,
क्योकिं हारा तो कोरोना है,
मानव की उम्मीद नही हारी है ।
मानव की इस जिद्दी जात ने आखिर,
कोरोना को भी हरा दिया।
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