Wednesday 12 August 2020

Important Priciples Of Child Development जानिए कौन से है बालविकास के महत्वपूर्ण सिद्धांत, जो दिलाती है जीवन मे सफलता

Important Priciples Of Child Development 
जानिए कौन से है बालविकास के महत्वपूर्ण सिद्धांत, जो दिलाती है जीवन मे सफलता 
Know which are the important principles of child development, which gives success in life


दोस्तों जीवन में बहुत ही अहम है कि हमारे बच्चों का मानसिक कुछ विकास इस तरह हो कि दुनियां की जुबान पर उसी की तारीफ हो, वह जीवन की हर उपलब्धि को हासिल कर सके,Important Priciples Of Child Development  in hindi हर चुनौती को पार करने की उसमें शक्ति हो, वह अपने रास्ते को खुद चुन सके, वह अपने माता पिता का सहारा बन सके, वह पढाई के प्रति कभी मायूस न हो , वह कभी भी उच्च शिक्षा से वंचित न रह सके आदी समस्याएं एवं प्रश्न हर माता-पिता के मन में उठते है।इसीलिए हमें पहले से ही ऐसी रणनीति अपनानी चाहिए जो कि हमारे बच्चे के विकास मे बाधा न हो Important Priciples Of Child Development  in hindi आज हम ऐसे ही सिद्धांतों के बारे में बात करेंगे जो बच्चों के Child Development  in hindi के लिए बहुत ही उपयोगी होने वाला है। बच्चों की मस्तिष्क विकास में सर्वाधिक लोकप्रिय सिद्धांतों की हम बात कर रहे है,।

बाल विकास के सिद्धान्त Principles of Child Development

सामान्यतः हम यह हम यह सोचने लगते है कि बालक मे किस प्रकार की शारीरिक व मानसिक क्षमता है , उन्हें किस प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में लगाया जा सकता है,बालक के विकास के लिए क्या-क्या प्रावधान हो सकते है, तथा वे अपने संवेगों पर कितना नियन्त्रण रख सकते हैं ? इसके लिए हमें उस बच्चे के शारीरिक , मानसिक , सामाजिक तथा संवेगात्मक परिपक्वता के स्तर का ज्ञान होना आवश्यक है,क्योंकि बच्चे के अन्दर सब कुछ है उसे बाहर कैसे निकाला जाए, जिससे वह उनकी क्रियाओं को नियन्त्रित करके उन्हें अपेक्षित दिशा प्रदान कर सके । 

आज हम बालविकास सिद्धांत के कुछ प्रमुख एवं प्रसिद्ध सिद्धान्त जिनका विवरण बताने जा रहे है ---

1- निरन्तरता का सिद्धान्त Principle of Continuity 

इसका अर्थ है कभी न रुकने वाली प्रक्रिया है । जी हां माँ के गर्भ से ही यह प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और मृत्यु - पर्यन्त चलती रहती है । एक छोटे से नगण्य आकार से अपना जीवन प्रारम्भ करके हम सबके व्यक्तित्व के सभी पक्षों - शारीरिक , मानसिक , सामाजिक आदि का सम्पूर्ण विकास इसी निरन्तरता के गुण के कारण भली - भाँति सम्पन्न होता रहता है । विकास सतत प्रक्रिया है जो गर्भ से ही सुरू हो जाती है।


2- एकीकरण का सिद्धांत -

Principle of Integration 

विकास की प्रक्रिया एकीकरण के सिद्धान्त का पालन करती है । इसके अनुसार , बालक पहले सम्पूर्ण अंग को और फिर अंग के भागों को चलाना सीखता है । इसके बाद वह उन भागों में एकीकरण करना सीखता है । सामान्य से विशेष की ओर बढ़ते हुए विशेष प्रतिक्रियाओं तथा चेष्टाओं को इकट्ठे रूप में प्रयोग में लाना सीखता है। उदाहरण के लिए , एक बालक पहले पूरे हाथ को , फिर अँगुलियों को फिर हाथ एवं अँगुलियों को एकसाथ चलाना सीखता है । 


3- विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है / Development is Predictable 

एक बालक की अपनी वृद्धि और विकास की गति को ध्यान में रखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा और स्वरूप के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है । उदाहरण के लिए , एक बालक की कलाई की हड्डियों का एक्स किरणों से लिया जाने वाला चित्र यह बता सकता है कि उसका आकार - प्रकार आगे जाकर किस प्रकार का होगा ? इसी तरह बालक की इस समय की मानसिक योग्यताओं के ज्ञान के सहारे उसके आगे के मानसिक विकास के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है । 


4- विकास की दिशा का सिद्धान्त/ Principle of Development's Direction 

इस सिद्धान्त के अनुसार , विकास की प्रक्रिया पूर्व निश्चित दिशा में आगे बढ़ती है । विकास की प्रक्रिया की यह दिशा व्यक्ति के वंशानुगत एवं वातावरण जन्य कारकों से प्रभावित होती है । इसके अनुसार बालक सबसे पहले अपने सिर और भुजाओं की गति पर नियन्त्रण करना सीखता है और उसके बाद फिर टाँगों को । इसके बाद ही वह अच्छी तरह बिना सहारे के खड़ा होना और चलना सीखता है ।


5- वैयक्तिक अन्तर का सिद्धान्त Principle of Individual Differences 

इस सिद्धान्त के अनुसार बालकों का विकास और वृद्धि उनकी अपनी वैयक्तिकता के अनुरूप होती है । वे अपनी स्वाभाविक गति से ही वृद्धि और विकास के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते रहते हैं और इसी कारण उनमें पर्याप्त विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं । कोई भी एक बालक वृद्धि और विकास की दृष्टि से किसी अन्य बालक के समरूप नहीं होता । विकास के इसी सिद्धान्त के कारण कोई बालक अत्यन्त मेधावी , कोई बालक सामान्य तथा कोई बालक पिछड़ा या मन्द होता है।

6- विकास क्रम की एकरूपता Uniformity of Pattern 

यह सिद्धान्त बताता है कि विकास की गति एक जैसी न होने तथा पर्याप्त वैयक्तिक अन्तर पाए जाने पर भी विकास क्रम में कुछ एकरूपता के दर्शन होते हैं । इस क्रम में एक ही जाति विशेष के सभी सदस्यों में कुछ एक जैसी विशेषताएँ देखने को मिलती हैं । उदाहरण के लिए मनुष्य जाति के सभी बालकों की वृद्धि सिर की ओर प्रारम्भ होती है । इसी तरह बालकों गत्यात्मक और भाषा विकास में भी एक निश्चित प्रतिमान और क्रम के दर्शन किए जा सकते हैं । 

7- वृद्धि एवं विकास की गति की दर एक - सी नहीं रहती Rate of Growth and Development is not Uniform 

विकास की प्रक्रिया जीवन - पर्यन्त चलती तो है , किन्तु इस प्रक्रिया में विकास की गति हमेशा एक जैसी नहीं होती । शैशवावस्था के शुरू के वर्षों में यह गति कुछ तीव्र होती है , परन्तु बाद के वर्षों में यह मन्द पड़ जाती है । पुनः किशोरावस्था प्रारम्भ में इस गति में तेजी से वृद्धि होती है , परन्तु यह अधिक समय तक नहीं बनी रहती । इस प्रकार वृद्धि और विकास की गति में उतार - चढ़ाव आते ही रहते हैं । किसी भी अवस्था में यह एक जैसी नहीं रह पाती । 

8- विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है Development Proceeds from General to Specific Responses 

विकास और वृद्धि की सभी दिशाओं में विशिष्ट क्रियाओं से पहले उनके सामान्य रूप के दर्शन होते हैं । उदाहरण के लिए अपने हाथों से कुछ चीज पकड़ने से पहले बालक इधर से उधर यूँ ही हाथ मारने या फैलाने की चेष्टा करता है । इसी तरह शुरू में एक नवजात शिशु के रोने और चिल्लाने में उसके सभी अंग - प्रत्यंग भाग लेते हैं , परन्तु बाद में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप यह क्रियाएँ उसकी आँखों और वाक्तन्त्र तक सीमित हो जाती हैं । भाषा विकास में भी बालक विशेष शब्दों से पहले सामान्य शब्द ही सीखता है । पहले वह सभी व्यक्तियों को ' पापा ' कहकर ही सम्बोधित करता है , इसके पश्चात् ही वह केवल अपने पिता को ' पापा ' कहकर सम्बोधित करना सीखता है ।

9- विकास लम्बवत् सीधा न होकर वर्तुलाकार होता है Development is Spiral and Not Linear 

बालक का विकास लम्बवत् सीधा न होकर वर्तुलाकार होता है । वह एक - सी गति से सीधा चलकर विकास को प्राप्त नहीं होता , बल्कि बढ़ते हुए पीछे हटकर अपने विकास को परिपक्व और स्थायी बनाते हुए वर्तुलाकार आकृति की तरह आगे बढ़ता है । किसी एक अवस्था में वह तेजी से आगे बढ़ते हुए उसी गति से आगे नहीं जाता , बल्कि अपनी विकास की गति को धीमा करते हुए वर्षों में विश्राम लेता हुआ प्रतीत होता है ताकि प्राप्त वृद्धि और विकास को स्थायी रूप दिया जा सके । यह सब करने के पश्चात् ही वह आगामी वर्षों में फिर कुछ आगे बढ़ने की चेष्टा कर सकता है । 

11- वृद्धि और विकास की क्रिया वंशानुक्रम और वातावरण का संयुक्त परिणाम है Growth and Development is a Joint Product of Both Heredity and Environment 

बालक की वृद्धि और विकास को किसी स्तर पर वंशानुक्रम और वातावरण की संयुक्त देन माना जाता है । दूसरे शब्दों में , वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में वंशानुक्रम जहाँ आधार का कार्य करता है वहाँ वातावरण इस आधार पर बनाए जाने वाले व्यक्तित्व सम्बन्धी भवन के लिए आवश्यक सामग्री एवं वातावरण जुटाने में सहयोग देता है । अतः वृद्धि और विकास की प्रक्रियाओं में इन दोनों को समान महत्त्व दिया जाना आवश्यक हो जाता है ।



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