Sunday 15 March 2020

हिन्दी व्याकरण (वर्ण विचार परिचय),वर्णमाला,वर्णो व स्वरों के भेद, अनुनासिक, व्यञ्जन, उच्चारण स्थान,प्रयत्न, अक्षर, बलाघात, अनुतान,संगम

हिन्दी व्याकरण (वर्ण विचार परिचय) 
Hindi Grammar Introduction to Character Ideas

(वर्णमाला,वर्णो व स्वरों के भेद, अनुनासिक, व्यञ्जन, उच्चारण स्थान,प्रयत्न, अक्षर, बलाघात, अनुतान,संगम)
(Alphabet, alphabet and vowel distinctions, nasal, consonantal, pronunciation places, attempts, letters, accents, transliteration, confluence)


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वर्ण - भाषा का रूप वाक्यों से बनता है । वाक्य सार्थक पदों ( शब्दों ) से बनते हैं और शब्दों की संरचना वर्णों के संयोग से होती है । अत : यह स्पष्ट है कि वर्ण भाषा की सबसे छोटे इकाई है । पारिभाषिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि----
(वर्ण भाषा की वह छोटी से छोटी ध्वनि है , जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते।)

जैसे - अ , आ , क् , च् , स् , न् इत्यादि
वर्ण शब्द का प्रयोग ध्वनि और ध्वनि चिह्न दोनों के लिए होता है ।

वर्णमाला - वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला
(Alphabets) कहते हैं ।

मानक देवनागरी वर्णमाला 

(The standard Devanagari alphabet


स्वर - अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ,

हिंदी के स्वरों को जब व्यंजनों के साथ प्रयुक्त किया जाता है तो स्वरों के स्थान पर इनके मात्रा - चिह्न स्वर में जुड़ जाते हैं ।
स्वरों के मात्रा - चिह्न निम्नवत् हैं ---
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ ऋ ए ऐ ओ | औ | - |

ध्वनियाँ (Sounds)-
अं ( अनुस्वार ) , अः ( विसर्ग ) 

व्यंजन (Dishes) 

1- कवर्ग - क् ख् ग् घ् ङ् ,
2- चवर्ग - च् छ् , ज् , झ् ञ् ,
3- टवर्ग - ट् ठ् ड् ढ् ण् ( ड़ ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन ) ,
4- तवर्ग - त् थ् द् ध् न् ,
5- पवर्ग - प् फ् ब् भ् म् ,
6- अंत : स्थ - य् र् ल् व् ,
7- ऊष्म - श् ष् स् ह् ,
8- गृहीत - ऑ , ज फ़, 
9- संयुक्त व्यंजन - क्ष , त्र , ज्ञ . श्र,

विशेष (Special)---सभी व्यंजनों में अ स्वर मिला रहता है ।
जैसे - ल = ल् + । किसी भी व्यंजन को स्वर रहित दिखाने के लिए उसके नीचे एक तिरछी रेखा खिंची होती है जिसे हल् चिह्न कहते हैं ।

वर्णों के मुख्य भेद--
The main distinction of characters


वर्णों को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है---

1- स्वर-- जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु बिना किसी रुकावट के मुख से बाहर आती है , उन्हें स्वर कहते हैं ।

जैसे - अ ,आ ,इ ,ई ,उ ,ऊ ,ए ,ऐ ,ओ, औ ,ऑ (आगत ) ऋ लिखित रूप में स्वर है और इसका मात्रा चिह्न भी निश्चित है, पर इसका उच्चारण ' रि ' के रूप में होता है । आजकल अंग्रेज़ी के प्रयोग से ' ' ध्वनि भी हिंदी में प्रयुक्त की जाने लगी है । इसका लिपि चिह्न है । यह ' आ ' और ' ओ ' के बीच की ध्वनि है तथा केवल आगत शब्दों के लिए ही प्रयुक्त की जाती है ।

उच्चारण स्थान के आधार पर स्वरों के भेद ---

1-  अनुनासिक स्वर (Nasal tone)

ये वे स्वर हैं जिनके उच्चारण में ध्वनि मुख के साथ - साथ नाक से भी निकलती है । अनुनासिकता को प्रकट करने के लिए शिरोरेखा के ऊपर चंद्र बिंदु का प्रयोग किया जाता है , पर शिरोरेखा के ऊपर स्वर की मात्रा भी लगी हा , तो सुविधा के लिए चंद्र बिंदु के स्थान पर मात्र ( i ) लगा दिया जाता है ।

जैसे - काँपना , चाँद , गाँव , हैं , कोंपलें , चकाचौंध आदि । 

2- निरनुनासिक स्वर (Nasal voice
ये वे स्वर हैं , जिनके उच्चारण में ध्वनि केवल मुँह से निकलती है ।
जैसे - काया , किसी , अनुकूल , कैकेयी , कोयल , चौथा आदि ।

समय के आधार पर स्वर के भेद 
Variation of tone based on time

1- ह्रस्व (ह्रस्व)
जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है ,उन्हें ह्रस्व कहते हैं । इनकी संख्या चार है - अ , इ , उ , ऋ । इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं , क्योंकि इन ध्वनियों में और किसी ध्वनि का संयोग नहीं है ।

2- दीर्घ स्वर (Long vowels)
जिन ध्वनियों के उच्चारण में दो मात्रा का समय लगता है , उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं । इनकी संख्या सात है । आ , ई , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ । 

3- प्लुत स्वर (Muted tone)
जिस स्वर के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तिगुना समय लगता है , उसे प्लुत स्वर कहते हैं । इसका प्रयोग प्रायः संस्कृत में ही होता है । यह किसी को पुकारने या बुलाने के लिए ही किया जाता है ।
जैसे--- ओ३म्,हे राम३ ।

विशेष (Special)
1- किसी भी स्वर का प्रयोग प्लुत रूप में किया जा सकता है । परंतु आजकल लिखते हैं समय ३ का प्रयोग नहीं किया जाता है ।

2- दीर्घ स्वर ह्रस्व स्वरों के दीर्घ रूप नहीं हैं अपितु स्वतंत्र ध्वनियाँ हैं ।

3- ' ऐ ' और ' औ ' स्वरों का प्रयोग स्वतंत्र ध्वनियों के रूप में तथा संयुक्त स्वरों के रूप दि में किया जाता है ।

ध्यान देने योग्य (Noteworthy)
हिंदी में स्वरों , व्यंजनों ( कवर्ग,चवर्ग,टवर्ग,तवर्ग और पवर्ग) से पूर्व आने वाले अनुस्वार को अब ङ , ण् . न् . म् रूप में नहीं लिखा जाता पर उनके स्थान पर ' बिंदु ' ( . ) का प्रयोग करना ही मान्य है ।

जैसे---- 
पुराना रूप नया ( मानक ) रूप कय कवर्ग गङ् गा , पङ् क ज गंगा , पंकज च उच ल , कुज चंचल , कुंज टवर्ग घण्टा , ड ण्डा घंटा , डंडा तवर्ग सन्त , गन्दा संत , गंदा अम्बु ज , खम्भा _ _ अंबज , खंभा चवर्ग भ पवर्ग

अनुस्वार और अनुनासिक  में अंतर -Difference between follower and nasal

अनुनासिक मूलतः स्वर ध्वनि हैं, जबकि अनुस्वार स्वर और व्यंजन का योग है, अनुनासिक का उच्चारण करते समय इसके उच्चारण में अलग समय नहीं लगता जबदि अनुस्वार स्वर के पश्चात् आता है और स्वर से पृथक होता है । इसलिए इसके उच्चारण : एक मात्रा का समय लगता है ।

जैसे - ' हँस ' के उच्चारण में अनुनासिक के कारण अलग से समय नहीं लगा जबकि ' हंस ' के उच्चारण में ' ह ' और ' अं ' के उच्चारण करने के कारण इसके उच्चारण करने में दो मात्राओं का समय लगा ।

विसर्ग -Annihilation

 विसर्ग का चिह्न स्वर के अंत में दो बिंदी ( : ) है । इसका उच्चारण हल्के की तरह होता है । तत्सम शब्दों में ही इसका प्रयोग होता है । जैसे - अतः , प्रातः , पुनः इत्यादि ( दु : ख को ' दुख ' लिखा जा सकता है । ) 

यदि विसर्ग शब्द के बीच में प्रयुक्त होता है तो उसके ऊपर की शिरोरेखा कटी हो है ।

जैसे - प्रात : काल , दु : ख , नि : संदेह इत्यादि । 
किसान में ' इ ' - आ और पितृ में इ ' - ऋ माः रूप में प्रयुक्त हुए हैं ।

स्वरों के दो रूप Two forms of vowels

लिखने में स्वर दोनों रूपों में प्रयुक्त होते हैं ----
1- मूल रूप में , 
2- मात्रा रूप में । 

1- मूल रूप में - 
जैसे - आइए , आओ । आइए , आओ शब्दों में आ , इ , ए और आ , अपने मूल रूप में प्रयुक्त हुए हैं । 

2- मात्रा रूप में - 
जैसे - च् + आ + च् + ई = च् + अ + च् + ई = चाची 

2- व्यंजन (Dishes)

जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय मुख से निकलने वाली वायु में रुकावट पड़ है , उन्हें व्यंजन कहते हैं।

 व्यंजन के मुख्य रूप से तीन भेद हैं ---
1-  स्पर्श ,
2-  अंत : स्थ ,
3-  ऊष्म 

1- स्पर्श व्यंजन -
वर्णों का उच्चारण करते समय वायु मुख के भिन्न - भिन्न स्थानो से टकराकर ध्वनि उत्पन्न करती है । इसलिए जब वायु जिह्वा द्वारा मुख के भिन्न - भिनन उच्चारण स्थानों का स्पर्श करती हुई ध्वनि निकालती है , तो ऐसे वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं । निम्नलिखित वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं---
कवर्ग-- क ख ग घ ङ
चवर्ग -- च छ ज झ ञ
टवर्ग -- ट ठ ड ढ ण
तवर्ग -- त थ द ध न
पवर्ग -- प फ ब भ म

2- अंतःस्थ व्यंजन -
अंत : स्थ व्यंजन वे वर्ण हैं , जिनका उच्चारण करते समय जिह्वा विशेष सक्रिय नहीं रहती । स्पर्श तथा ऊष्म व्यंजनों की मध्यवर्ती स्थिति में होने के कारण इन्हें अंत : स्थ व्यंजन कहते हैं ।
इनकी संख्या चार है -( य , र , ल , व )

3-  ऊष्य व्यंजन -
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय श्वास वायु मुख के विशेष स्थानों को छूने के कारण कुछ - कुछ गर्म हो जाती है , वे ऊष्म व्यंजनों की श्रेणी में आते हैं ।
इनकी संख्या भी चार है - (श , ष , स , ह )

ऊष्म वर्गों के उच्चारण के समय मुख से सीटी की - सी आवाज़ उत्पन्न होती है ।

वर्णों के उच्चारण स्थान और प्रयत्न
The pronunciation and the pronunciation of the characters


फेफड़ों से निकलकर मुख और नासिका विवर से आने वाली वायु के सहारे ही | ध्वनियों का उच्चारण होता है । (जिह्वा , कंठ , तालु , ओष्ठ , मूर्धा , नासिका , दंत , आदि)  अवयव उच्चारण में सहायता करते हैं । बोलते समय वायु फेफड़ों से निकलकर श्वास नलिका से होती हुई बाहर की ओर आती है । उस समय साँस जहाँ रोकी जाती है , वह स्थान संबद्ध ध्वनि का उच्चारण स्थान होता है ।

वर्ण - उच्चारण स्थान - नाम

1- अ , आ , क , ख , ग , घ , ङ और विसर्ग ( : ) 
(कंठ)  (कठ्य )

2- इ , ई , च , छ , ज , झ , ञ , य , श 
(तालु) (तालव्य )

3- ऋ , ष , ट , ठ , ड , ढ , ण , ढ़ , ड़ 
(मूर्धा) (मूर्धन्य)

4-  ल , त , थ , द , ध , न  
(दंत) (दंत्य) 

5-  उ , ऊ , प , फ , ब , भ , म 
(ओष्ठ) (ओष्ठ्य)

6-  ए , ऐ 
(कंठ -तालु )  (कंठ-तालव्य)

7- ओ , औ 
(कंठ - ओष्ठ ) (कंठौष्ठ्य)

8-  ङ , ञ , ण , न , म , अं , अँ 
(नासिका ) (नासिक्य)

9- व , फ 
( दंत-ओष्ठ)  (दंतौष्ठ्य)

10- स , र , ल , ज , ( न ) 
(दंतमूल)  (वत्सर्य)

11-  ह   
(स्वरयंत्र ) (स्वरयंत्रीय)

प्रयत्न ( Effort)

वर्णों के उच्चारण में होने वाले यत्न अथवा व्यापार को प्रयत्न कहा जाता है । या वर्णों के उच्चारण की रीति को प्रयत्न कहा जाता है ।
प्रयत्न के दो भेद होते हैं -
1- आभ्यंतर प्रयत्न
2- बाह्य प्रयत्न

1- आभ्यंतर प्रयत्न -
वर्णों के उच्चारण के समय ध्वनि उत्पन्न होने से पूर्व हो वाली मुख ( वाक् इंद्रिय ) की भीतरी क्रिया ( यत्न ) को आभ्यंतर प्रयत्न कहते हैं । इस चार भेद हैं ---

( क ) स्पृष्ट - 
बोलते समय जीभ मुख के भिन्न - भिन्न स्थानों को पूरी तरह छूती ।
जैसे - क ख ग घ ङ,  च छ ज झ ञ , ट ठ ड ढ ण , त थ द ध न , प फ ब भ म,

( ख ) ईषत् स्पृष्ट - 
बोलते समय जब जीभ भिन्न - भिन्न उच्चारण स्थानों को थो ( ईषत् ) छूती है ।
जैसे - य , र , ल , व ।

( ग ) विवृत -
जिन वर्णों के उच्चारण में मुँह खुला रहता है ।
जैसे - अ , आ , इ , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ।

( घ ) ईषत् विवृत -
जिन वर्णों के उच्चारण में मुँह कम खुला रहता है ।
जैसे ष , स , ह ।

2-  बाह्य प्रयत्न - 
बाह्य प्रयत्न दो प्रकार का होता है ।
जैसे ---
( क ) स्वर - तंत्रियों की स्थिति और कंपन के आधार पर - --
( i ) सघोष ,
( ii ) अघोष

- सघोष - 
जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर तंत्रियों के साथ श्वास की र से उत्पन्न नाद ( गूंज ) का उपयोग होता है , उन्हें सघोष वर्ण कहा जात ---
जैसे - ग , घ , ङ , ज , ज , झ , ञ , ड , ढ , ड , ढ , ण , द , ध , न , ब , भ , म , र ल , व , ह और सभी स्वर ।

- अघोष - 
जिन वर्णों के उच्चारण में केवल श्वास का उपयोग होत केई नाद ( गूंज ) उत्पन्न नहीं होता , उन्हें अघोष वर्ण कहते हैं ।
जैसे - क च , छ , ट , ठ , त , थ , प , फ , फ़ , श , ष , स ।

ख -- प्राण वायु की मात्रा के आधार पर - -
( क ) अल्प प्राण ,
( ख ) महाप्राण

अल्पप्राण -- 
जिन वर्णों के उच्चारण में प्राण - वायु कम मात्रा में बाहर आती है उन्हें अल्पप्राण वर्ण कहते हैं ।
जैसे - ( क , ग , ङ , च , ज , ञ , ट , ड , ण , त , द , न , प , ब , भ ) । सभी वर्गों के पहले , तीसरे और पाँचवें वर्ण तथा सभी स्वर ( अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ) अल्पप्राण कहलाते हैं ।

महाप्राण -- 
जिन वर्गों के उच्चारण में श्वास - वायु ( अपेक्षाकृत ) अधिक मात्रा में बाहर आती है , उन्हें महाप्राण वर्ण कहते हैं ( ख , घ , ठ , झ , ढ , थ , ध , फ , भ ) । प्रत्येक वर्ग के दूसरे चौथे वर्ण और श , ष , स , ह महाप्राण वर्ण हैं ।

जिह्वा व अन्य अवयव द्वारा श्वास - अवरोध के आधार पर व्यंजनों को आठ भागों बाँटा जा सकता है -----

1--  स्पर्श -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में उच्चारण अवयव दूसरे अवयव का स्पर्श करता है , जिससे वायु पूर्ण रूप से रुक जाती है , उन्हें स्पर्श या स्पर्शी व्यंजन कहते हैं ।
जैसे - क , ख , ग , घ , ट , ठ , ड , ढ , त , थ , द , ध , प , फ , ब , भ ।

2-- नासिक्य -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा का अधिक से अधिक अंश नासिका से होकर निकलता है और मुख से बहुत कम हवा निकलती है , उन्हें नासिक्य व्यंजन कहते हैं ।
जैसे - ङ , ञ , ण , न , म ।

3-- स्पर्श संघर्षी -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा तथा उच्चारण के बाद वाला अंश संघर्षी हो जाता है , उन्हें स्पर्श संघर्षी व्यंजन कहते हैं ।
जैसे - च , छ , ज , झ , ञ ।

4-- संघर्षहीन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा बिना खाए बाहर आती है , उन्हें संघर्षहीन व्यंजन कहते है ।
जैसे - य , व ।

5-- प्रकंपित -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु जीभ को कँपा देती है उन्हें प्रकपित व्यंजन कहते हैं ।
जैसे - (र)

6-- पाश्विक -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ का अगला हिस्सा मसूढे को छूता है और इसी दौरान हवा दोनों तरफ से होकर निकल जाती है , उन्हें पाश्विक व्यंजन कहते हैं ।
जैसे - ल

7-- संघर्षी -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा संघर्ष करती हुई बाहर निकलती है , उन्हें संघर्षी व्यंजन कहते हैं ।
जैसे - श , ष , स , ह , ख , ज़ , फ , ख और ग संघर्षी हैं ।

8--  उत्क्षिप्त -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिहवा झटके के साथ ऊपर जाकर तीव्र गति से नीचे को गिरती है , उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं ।
जैसे - ड , ढ ।

व्यंजन गुच्छ (Bunch of dishes)

जब दो या दो से अधिक व्यंजन एक साथ एक श्वास के झटके में बोले जाते हैं । उन्हें व्यंजन गुच्छ कहा जाता है ।
जैसे - प्यास , क्यारी , क्लेश , स्तंभ , प्राप्त , आरंभ

(र ) वर्ण के विभिन्न तरह से प्रयोग ---
1- जब स्वर रहित र् किसी व्यंजन से पहले आता है , तो वह उस व्यंजन के सिर । ( रूप में ) प्रयुक्त होता है ।
जैसे - कर्म , स्वर्ग ।

2-  र् से पूर्व यदि कोई स्वर रहित व्यंजन है , तो यह उस व्यंजन के नीचे निम्न रूप प्रयुक्त होता है ।
जैसे - ग् + र = ग्र - ग्रहण , क् + र = क्र - वक्र , प् + र = प्र - प्राप्त ।

3--ट् और ड् के साथ र का संयोग होने पर यह निम्न रूप धारण कर लेता है ।
 जैसे - ट् + र = ट्र - ट्रक , ड् + र = ड्र - ड्रामा ।

4-- श के साथ र का संयोग होने पर इसका रूप बदल जाता है ।
जैसे - श् + र = श्र – श्रीराम ।

5- स् तथा त् के साथ र का संयोग होने पर स् तथा त् निम्न रूप धारण कर लेते है।
जैसे - स् + र = स्र - स्रोत । त् + र = त्र - पत्र , पुत्र ।

महत्वपूर्ण बात यह है कि स् + त् + र का संयुक्त रूप स्त्र होता है ।
जैसे - अस शस्त्र परंतु विद्यार्थी स्र और स्त्र के अंतर को जाने बिना सहस्र को सहस्त्र तथा स्रोत स्त्रोत लिख देते हैं , जो लेखन , अर्थ , उच्चारण आदि सभी दृष्टियों से अशुद्ध है ।

संयुक्ताक्षर और व्यंजन द्वित्व

संयुक्ताक्षर -
हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों के नीचे क्ष , त्र , ज्ञ लिखा होता है । छात्र ! भी व्यंजन वर्णमाला में ही समझ बैठते हैं । हैं तो ये भी व्यंजन , पर हैं ये संयुक्त रूप में । अ इनके रूप - स्वरूप को समझ लेना आवश्यक है ।
क्ष = क् + ष् + आ
ज्ञ = ज् + ञ् +
त्र = त् + र् + अ
ये संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं ।

द्वित्व -
जब दो समान व्यंजन आपस में मिलते हैं , तो द्वित्व कहलाते - जैसे - कुत्ता , रस्सी , चक्की ।

संयुक्त और द्वित्व व्यंजनों में अंतर---

संयुक्त व्यंजन में दो असमान व्यंजन मिलते हैं ।
जैसे - भक्ति , बुद्धि , वृद्ध ।

द्वित्व में दो समान व्यंजन मिलते हैं ।
जैसे - पत्ता , चक्कर , टटू ।

वर्ण - विच्छेद (Character - Dissociation)
किसी शब्द में प्रयुक्त वर्णों को अलग - अलग करना ही वर्ण - विच्छेद कहलाता है ।

उदाहरणार्थ--
- अत्यावश्यक = अ + त् + य् + आ + व् + अ + श् + य् + अ + क् + अ

- आकांक्षा = आ + क् + आ + क् + ष् + आ

- सहस्राब्दी = स् + अ + ह् + अ + स् + र् + आ + ब् + द् + ई

- उपर्युक्त = उ + प् + अ + र् + य् + उ + क् + त् +

- निकृष्ट = न् + इ + क् + ऋ + ष् + ट् + अ

अक्षर ---(Letter)
प्रायः ' अक्षर ' शब्द का प्रयोग वर्णमाला के वर्गों के लिए किया जाता है किंतु अक्षर की एक भिन्न तथा मानक परिभाषा भी है - ध्वनि की वह छोटी से छोटी इकाई जिसका उच्चारण वायु के एक झटके से होता है , अक्षर कहलाती है ।
जैसे - आ , जी . क्या इत्यादि ।

ज्ञातव्य है कि सभी स्वरों का स्वतंत्र रूप से उच्चारण हो सकता है । अतः सभी स्वर अक्षर हैं , परंतु व्यंजन स्वतंत्र उच्चारण की क्षमता न रखने के कारण अक्षर नहीं कहला सकते । उन्हें अक्षर तभी कह सकते हैं जब कोई स्वर उनके साथ मिला हो ।

एक अक्षर में एक ही स्वर होता है , परंतु व्यंजन कई हो सकते हैं ।

-- एकाक्षरी शब्द - आ . लो . खा , क्या -- 

-- दो अक्षरी शब्द - आओ , चलो , जैसे

-- चार अक्षरी शब्द - आइएगा , कविताएँ , अध्यापिका,

-- पाँच अक्षरी शब्द - अध्यापिकाएँ , मनोकामना , नवजीवन ।

बलाघात (Accentuation)
किसी शब्द के उच्चारण में अक्षर पर जो बल दिया जाता है , उसे बलाघात कहते हैं । किसी भी शब्द के सभी अक्षर समान बल से नहीं बोले जाते । हिंदी में शब्दों के उच्चारण में जब अक्षर पर बलाघात होता है , तो उसके कारण अर्थ में कोई अंतर नहीं आता ।

1-- एकाक्षर वाले शब्दों में बलाघात स्वाभाविक रूप से उसी अक्षर पर होता है ।
जैसे - आ , जी , पी

2-- एक से अधिक अक्षर वाले शब्दों में यदि अक्षर ह्रस्व हों तो बलाघात अंतिम स पूर्व अक्षर पर होता हैं ।
जैसे - कमल , जगत । यहाँ क्रमश :  म ' और ' ग ' पर बलाघात है ।

3--  तीन चार अक्षर वाले शब्दों में यदि मध्य अक्षर दीर्घ हो तो बलाघात उसी दीर्घ और पर ही होगा ।
जैसे – प्रमाण , प्रस्थान । यहाँ ' मा ' और ' था ' पर बलाघात है ।

जब बलाघात शब्द स्तर पर होता है तो वाक्य के अर्थ में स्वाभाविक रूप से परिवर्त आ जाता है ।

जैसे - आज मैं बाज़ार जाऊँगा । यहाँ ' मैं ' पर बल दिया गया है । इससे यह प्रकट हो है कि अन्य दिन और कोई बाज़ार जाता रहा पर आज और कोई नहीं , बल्कि मैं ही बाज़ जाऊँगा ।

यदि ' बाज़ार ' शब्द पर जोर दिया जाए , तो वाक्य का अर्थ होगा कि मैं अन्य दिनों भले ही कहीं और जाता रहा हूँ , पर आज बाज़ार ही जाऊँगा ।

अनुतान (Tetanus)
बोलने में जो सुर का उतार - चढ़ाव होता है , उसे अनुतान कहते हैं । शब्द अ वाक्य - स्तर पर इसका बहुत महत्व है । अनुतान अर्थ और भाव - परिवर्तन में महत्वप भूमिका निभाता है ।
जैसे ---
( क ) अच्छा । सामान्य कथन / स्वीकृत अर्थ में ।

( ख ) अच्छा ? प्रश्नवाचक रूप में ।

( ग ) अच्छा ! आश्चर्यपूर्ण भाव में ।

संगम (Confluence)
दो पदों की सीमा को जानते हुए उनमें उचित विराम - चिहन देना ही संगम कहल है ।
जैसे---
-- सिरका – एक तरह का तरल पदार्थ ।
-- सिर - का - सिर से संबंधी ।
-- जलसा - उत्सव ।
-- जल - सा - जल के समान ।

वाक्य प्रयोग द्वारा संगम की स्थिति को समझा जा सकता है ।
जैसे--
-- फलों को बंद रखा गया है ।
-- फलों को बंदर खा गया है ।

संगम शब्द और वाक्य - स्तर पर अर्थ को प्रभावित करता है । अत : इसकी स्थिति ज्ञान अत्यावश्यक है ।

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