(22)नीति के दोहे के ज्ञानवर्धक व प्रेरणादायक तथा सफलता दिलाने व जीवन को सही दिशा मे ले जाने वाले विचार
(22) Couples of policy are enlightening and inspiring and ideas to bring success and take life in right direction

Dohawali
हिन्दी साहित्य के अनुपम विधा है काव्य संग्रह और इसमे हमारे कयी ऐसे कवियों का भी योगदान रहा है जिनहोने इस भारत वर्ष ही नही अपितु समस्त संसार को ज्ञान दिया। 
आज हम आपके लिए लेकर आए है नीती के दोहे, सुविचार, दोहावली ,कबीर दोहावली, रहीम दोहावली, दोहावली फोटोज, इमेज, वटसप स्टेटस आदि पीडियफ ले सकते है। जो ऐसे सुविचार और अलौकिक ज्ञान है जो हमारे जीवन को नयी दिशा दे सकता है। हमारे इस ब्लॉग gyansadhna.comमे आप पढेंगे
संस्कृत श्लोक,संस्कृत में सूक्तियां, संस्कृत में सुविचार,सुभाषितानी) आदि कयी ऐसे महान विचार हमारे ग्रंथों से लिये गये है। अत: इसी प्रकार संस्कृत श्लोक ज्ञानवर्धक और शिक्षा प्रद कथनों को इस "संस्कृत सुभाषितानि" में हिन्दी अर्थ, संस्कृत भावार्थ सहित समाहित करने का छोटा सा प्रयास किया गया है।Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानी, सफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं।gyansadhna.com
1- सचिन्तन नियमित करें, सदगुण करें सहाय ।
दुर्गुण से अति दूर हों ,बुद्धि देंइ बिनसायङ्क ।।
भावार्थ-व्यक्ति को हमेशा चिन्ता करनी चाहिए, और सद्गुणों को अपनाना चाहिए। अवगुणों से हमेशा दूर रहना चाहिए , तभी वुद्धि का भी विकास होगा और जगत का भी।
2- गलत सोच जो गहि रहें ,गलत करें सब काम ।
केहि विधि पावहि विमल यश ,रहें सदा बदनामङ्क ।।
भावार्थ-जो व्यक्ति गलत सोच या भाव मन में स्थापित करता है,उसके सभी कार्य भी गलत ही होते है। वह इस भवसागर में कभी भी यश (मान-सम्मान ) नही पा सकता, हमेशा सबके सामने गलत ही साबित होगा।
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3- दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त ।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।
भावार्थ-यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।
4- जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ।।
भावार्थ-जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।
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5- बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि ।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
भावार्थ-यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।
6- स्वारथ में डूबें नहीं ,परमारथ की ओट ।
जीवन यह विधि चालिए ,गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोटत ।।
भावार्थ-कभी भी स्वार्थ में मत रहो, परोपकार को और आत्मा यानी ईश्वर के कार्य को समझकर ही उसमे ध्यान केंद्रित करो,जीवन इस तरह जीना कि आपकी वजह से दूसरा भी खुशी के पल जी सकें तभी आपका जीवन सार्थक हो सकेगा।
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7- गहे कुमारग मनुज जो ,मेंट देइ मरजाद ।
जीवन दूभर ह्वै रहे ,चारों ओर फिसादत ।।
भावार्थ-जो मनुष्य अपना हित और दूसरे का अनहित चाहता है,या सोचता है, उसके लिए जीवन जीना दुस्वार हो जाता है,वह चारों तरफ से झगडे,फिसादों से घिरा रहता है।
8- बिन विचार खर्चा करें, झगरे बिनहिं सहाय ।
आतुर सब तिय में रहै, सोइ न बेगि नसाय ॥
भावार्थ-बिना समझे-बूझे खर्च करने वाला मनुष्य अनाथ, झगडालू होता है और सब तरह की स्त्रियों के लिए बेचैन रहने वाला मनुष्य देखते-देखते चौपट हो जाता है।
9- लेन देन धन अन्न के, विद्या पढने माहिं ।
भोजन सखा विवाह में, तजै लाज सुख ताहिं ॥
भावार्थ-जो मनुष्य धन तथा धान्य के व्यवहार में, पढने-लिखते में, भोजन में और लेन-देन में निर्लज्ज होता है, वही सुखी रहता है।
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10- जिनका मन सधता नहीं ,जागृत नहीं विवेक ।
साध न पावें लक्ष्य वे ,उनको कष्ट अनेकत ।।
भावार्थ-जिस व्यक्ति का मन साधु जैसा नहीँ है,यानी सरल स्वभाव का नही है,और जिसका विवेक (भावना) सोया हुआ है, वह न तो अपने लक्ष्य को पा सकता है और न ही सफलता उसको जीवन में अनेकों कष्ट प्राप्त होते है।
11- मृदुता को विस्मृत करें , कटुता को अपनाय ।
ऐसे नर अपयश लहें ,घृणित भाव उपजायत ।।
भावार्थ-जो मनुष्य मीठी भाषा को भूल जाता है,और हमेशा कटुटा (कडवी भाषा) का ही प्रयोग करता है। ऐसे मनुष्य हमेशा कष्ट पाते है और उसका घृणित विचारों का प्रभाव अधिक बढ जाता है।
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12- “खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति ।
मदपान रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान ।।
भावार्थ-सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता हैं ।
13- “जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय ।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय ।।
भावार्थ-लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत इतराते हैं. वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में ज्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लता हैं ।
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14- संयम साधे जे रहें ,शीतल करें सुभाय ।
विद्या , बुद्धि विवेक बल ,उनके सदा सहायत ।।
भावार्थ -जो मनुष्य अपने जीवन में संयम को अपनाता है। उसका मन हमेशा शीतलता से भरा रहता है,और उसके साथ हमेशा बल, बुद्धि, विद्या, सहायक होती है।
15- दूषण से संकट बढ़े ,उपजे घोर अशांति ।
आत्मप्रताड़ित ह्वै रहें ,मिले कहाँ विश्रांतित ।।
भावार्थ-जिस मनुष्य का मन दूषित विचारों, भावों से भरा रहता है, उसके जीवन में हमेशा अशान्ति ही रहती है।उसकी आत्मा भी उसका साथ नहीं देती है, और वह कहीं भी शान्ति का अनुभव नहीं कर पाता है।
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16- समय पाय फल होत है,समय पाय झरी जात ।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात ।।
भावार्थ-रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है ।
17-“जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह ।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह ।।
भावार्थ-रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है, सहन करनी चाहिए क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार हमारे शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए ।
18- जिनके जीवन में दिपै ,ज्ञान ,कर्म अरु भक्ति ।
तिनके प्रभु रक्षक सदा ,मिले अपरमित शक्तित ।।
भावार्थ-जिस मनुष्य के जीवन में सदा ज्ञान, कर्म और भक्ति रहती है, उस मनुष्य की रक्षा सदा ईश्वर करते है।
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19- सत्य बोल बोलें सदा ,रहें असत से दूर ।
सबका हित साधन करें ,दया भाव भरपूरत ।।
भावार्थ-मनुष्य को हमेशा सत्य व प्रिय वचन ही बोलना चाहिए,असत्य का दामन हमेशा के लिए त्याग देना चाहिए। हमेशा दया भाव उसे भरपूर रहना चाहिए।
21-“बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय ।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ।।
भावार्थ-अपने अंदर के अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दुसरों को और खुद को ख़ुशी हो ।
22- “मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय ।
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय ।।
भावार्थ-मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते ।
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