Saturday 25 April 2020

मन की प्रचण्ड शक्ति, मन को काबू मे करने के उपाय, प्रकार व विद्यार्थी जीवन में मन का महत्व, mind in student life

मन की प्रचण्ड शक्ति, मन को काबू मे करने के उपाय, प्रकार व विद्यार्थी जीवन में मन का महत्व 
Strong power of mind, ways to control mind, types and importance of mind in student life
Man ko kaboo kare

विद्यार्थी जीवन हो या जीवन की कोई भी अवस्था हो मन को एकाग्र करना बहुत ही जरूरी है, मन से ही जीवन की डोर बंधी हुई है। मन और इसके कार्य करने के विविध पहलुओं का मनोविज्ञान नामक ज्ञान की शाखा द्वारा अध्ययन किया जाता है। मन की विभिन्न विधाओं के रहस्यों को सुलझाया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य और मनोरोग किसी व्यक्ति के मन के सही ढंग से कार्य करने का विश्लेषण करते हैं। मनोविश्लेषण नामक शाखा मन के अन्दर छुपी उन जटिलताओं का उद्घाटन करने की विधा है जो मनोरोग अथवा मानसिक स्वास्थ्य में व्यवधान का कारण बनते हैं। उसी व्यवधान से ही मनुष्य जीवन पर्यन्त कुछ नही कर पाता है। वहीं मनोरोग चिकित्सा मानसिक स्वास्थ्य को पुनर्स्थापित करने की विधा है। जो आजीवन चलती रहती है।
आपको मेरे इस ब्लॉग पर Motivational QuotesBest Shayari, WhatsApp Status in Hindi के साथ-साथ और भी कई प्रकार के Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्रगायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि कई gyansadhna.com 

शिक्षा मनोविज्ञान उन सारे पहलुओं का अध्ययन करता है जो किसी व्यक्ति की शिक्षा में उसके मानसिक प्रकार्यों के द्वारा प्रभावित होते हैं।

मन का श्वरूप क्या है--
What is the form of the mind

 मनुष्य या मानव मूलत : मन प्रधान है । मनुष्य , मानव या अंग्रेजी शब्द मैन की व्यत्पत्ति का कारण भी ' मन ' या ' माइण्ड ' से ही हुई है । मन में स्थित सुविचार अथवा दर्विचार ही हमारा चिंतन बनकर व्यवहा आचरण के माध्यम से चरित्र का निर्माण करते हैं ।

मन की महत्ता क्या है - 
What is the importance of mind
वस्तुत : मन ही मनुष्यों के बन्धन और मुक्ति का जिसका मन अपने वश में है , वही सच्चा स्वतंत्र और आत्मज्ञाना है विपरीत जो व्यक्ति मन के वश में होकर उस पर नियंत्रण नहीं रख स बन्धन युक्त है , दुखी है ।
(' मनः एव मनुष्याणां कारणं बन्धनमोक्षयोः ।)

 मन की सत्ता के सामने हार मानने पर व्यक्ति स्वयं से हार बैठता है और मन को जीतने पर ही आत्मजय संभव है । तभी कोई व्यक्ति परब्रह्म पर न्धन और मुक्ति का कारण है । और आत्मज्ञानी है । इसके नयत्रण नहीं रख सकता वह स्वयं से हार बैठता है और मन क्त परब्रह्म परमात्मा का भी साक्षात्कार कर सकता है ।
शास्त्रों में कहा गया है--
" मन के हारे हार है,मन के जीते जीत । 
पारब्रह्म को पाइये मन ही के परतीत ॥ "

विद्यार्थी जीवन में मन की महत्ता--
Importance of mind in student life

आज के विद्यार्थी को भी अध्ययनशील तथा अध्यवसायी होने के लिए मन को शक्ति को पहचान कर उसका भरपूर उपयोग करके ही स्वाध्याय का लाभ लेना चाहिए । कक्षा में बैठा विद्यार्थी यदि शरीर से कक्षा में बैठा है और उसके मन का घोड़ा कहीं अन्यत्र विचरण कर रहा है तो सशरीर कक्षा में रहते हुए भी उसे कोई लाभ नहीं मिल सकता । मन के सम्पूर्ण योगदान के बिना कोई भी कार्य अच्छी तरह सम्पादित नहीं किया जा सकता ।

यह मन इतना चंचल और दुर्निवार है कि इसे बिना अभ्यास और वैराग्य के वश में करना कठिन है । भगवान श्रीकृष्ण के गहन आत्मज्ञान को सुनते - सुनते गीता में महारथी अर्जुन भी मन की प्रचण्ड शक्ति का इस प्रकार बखान करके हतप्रभ सा हो जाता है और वह कहता है - ' हे प्रभो यह प्रमथन स्वभाव वाला मन बहुत बलवान एवं चंचल है । इसको वश में करना वायु को बाँधने की तरह अत्यन्त कठिन है ।

निस्संदेह यह मन बड़ा चंचल एवं कठिनाई से वश में होने वाला है । इसको गहन अभ्यास तथा वैराग्य भावना से ही वश में किया जा सकता है । मन की प्रचण्ड शक्ति के आगे बड़े - बड़े आत्मज्ञानी , संत , महात्मा हार मान जाते हैं । मन को मथकर रखने में सक्षम ये इन्द्रियाँ मन को जबरदस्ती अपनी ओर खींचती हैं । फिर मन बुद्धि को हर कर , अपनी ओर कर लेता है । तब पूरे शरीर पर भीतर बाहर मन का राज हो जाता हैं और मनुष्य श्रेय मार्ग से विचलित हो जाता है ।

कबीर जैसा मस्त , मनमौजी , फकीर भी मन की प्रचण्ड शक्ति के आगे विवश होकर कह उठता है--
" मन तोहे केहि विधि कर समझाऊँ । 
घोड़ा होय तो लगाम लगाऊँ । 
ऊपर जीन कसाऊँ । 
होय सवार तेरे पर बैलूं , 
चाबुक देके चलाऊँ ॥ 

उसके निग्रह की समस्या हर साधक के सामने रही है । सामान्य जन से लेकर बड़े - बड़े महापुरुषों पर मन का आतंक रहा है । इसे वश में करने के लिए सतचिंतन , सद्कर्म , निरंतर अभ्यास तथा ईश्वरानुग्रह आवश्यक है ।

(मनोनिग्रह - मन को वश में करने के कुछ महत्वपूर्ण तत्थ ,विशेषताएं - 
Manonigraha - Some important elements, features to control the mind
किसी भी कार्य के परिस्थिति एवं उपयुक्त मनःस्थिति का होना नितांत आवश्यक है । और मन का शान्त होना तो परम आवश्यक है तभी आप अपने लक्ष्य को पा सकते हैं, अन्यथा मन विचलित रहने पर ध्यान और एकाग्रता केन्द्रित नहीं रह पाता है
कुछ आसान उपाय गो आपके जीवन और मन को लक्ष्य सफलता प्राप्ति हो पाएगी--

1- मन की स्थिति ठीक , शांत एवं संयत रखना आवश्यक है ।

2- बाह्य कारण यानी इन्द्रियों से कोई भी कार्य तब तक ठीक - ठीक सम्पादित नहीं किया जा सकता , जब तक उसमें हमारे अन्तःकरण का मेल नहीं हो पाता ।

3- मन , बुद्धि , चित्त और अहंकार ये चारों ही अन्तकरण चतुष्टय कहे जाते हैं ।

4- कर्मों के कुशल सम्पादन में इनका सही - सही योगदान बहुत आवश्यक है ।

5- मन की प्रचण्ड शक्ति का वेग यदि प्रतिकूल हो जाय तो सफलता के सारे प्रयास , सारा परिश्रम निष्फल हो जाता है ।

6- पूरे मनोयोग पूर्वक कर्म करने के लिए इस परम शक्तिशाली राजा मन को भी साथ रखना बहुत आवश्यक है ।

7- मन की हर राय भी मानने योग्य नहीं होती । परीक्षा के दिनों में गहन अध्ययन में लगते हुए यदि मन उचट जाय और कुलाचे मार कर खेलने या मनोरंजन की ओर दौड़ पड़े तो यहाँ उसे रोकना , उस पर अंकुश लगाना भी बहुत जरूरी है ।

मन को वश।में करने के आसान उपाय--
Easy ways to tame the mind

1-सच्चिंतन , सद्भाव एवं सत्कर्म का अभ्यास
मन के भटकाव को राकन के लिए विचारों को अच्छा बनाना बहत जरूरी है । विचारों की पूँजी ही हमारा सच्ची जी है । व्यक्तित्व का निखार विचारशीलता पर ही निर्भर है । विचारा सका सोचने के ढंग से ही जीवन को दिशा मिलती है । इसलिए हमेशा मन म अच्छे विचारों को ही स्थान दें । दोष , दर्गण एवं दर्विचारों से दूर ही रहे । ज विचार मन में आते रहते हैं , वैसी ही सोच बन जाती है और व्यक्ति उसा । कार्य करने को प्रवृत्त हो जाता है । मन की चंचलता एवं लोलुप वृत्तियों प अंकुश लगा कर उसे विधेयात्मक कार्यों में ही लगाए रखना चाहिये । खुली छूट न देकर उसकी लगाम अपने हाथ में रखनी चाहिए । में ' मा यह न मानकर यही हमेशा मानना चाहिये कि मन मेरा है । मैं हा इस हूँ । इसे मैं अपने अनुसार ही चलाऊँगा ।

2- मन की गतिविधियों की सतत समीक्षा करना - 
Continuous review of mind movements
अपने आपको एक दृष्टा मानकर मन से ऊपर उठकर मन के कार्यों तथा गतिविधियों पर तटस्थ का अभ्यास एकान्त में किया जाये । मन का प्रवाह किस दिशा में कि यदि वह वासना , विकार , तष्णा , लोलपता , आवेश , आवेग , आदि निषेधात्मक गतिविधियों में डबता प्रतीत हो तो उसे उदात्त रखना चाहिये । मन को ना चाहिए । ' मैं ' मन का हूँ में ही इसका मालिक का एक दृष्टा या साक्षी पर तटस्थ दृष्टि रखने दिशा में किस ओर है ? आवेग , ईर्ष्या , द्वेष , घृणा । उसे उदात्त गुणों की ओर सहजता से मोड़ा जाय । मन को हमेशा सत्य , प्रेम , करुणा , दया , ममता , उपकार , सेवा , सत्कर्म आदि विधेयात्मक कार्यों में लगाये रखा जाय । 

सही समझ और सूझबूझ इसी में है कि मन की गतिविधि का आकलन निरंतर करते रहा जाय । पतनोन्मुखी मनोवृत्ति को धीरे - धीरे अच्छे सद्कर्मों की ओर प्रेरित करते रहने से उसे वश में किया जा सकता है । मन के हर क्रिया - कलाप के जितने प्रत्यक्ष दृष्टा हम स्वयं होते हैं , उतना कोई दूसरा नहीं हो सकता । इसलिए हम ही अपने मित्र हैं और हम ही अपने शत्रु मन को पूरी छूट देकर उसके अनुसार ही अपने आपको छोड़ देने पर हम ही हमारे शत्रुवत बन जाते हैं । इस प्रकार हम स्वयं ही अपना उद्धार कर सकते हैं और स्वयं अपना पतन भी ।
गीता में कहा गया है--
"उद्धरेत् आत्मानात्मानं नात्मानमवसादयेत् । 
आत्मेवह्यात्मनो बंधुरात्मेवरिपुरात्मनः ॥ 

3- मनोविकारों पर कड़ी दृष्टि - 
मन की गतिविधियों को सामान्य समीक्षक की तरह देखना ही पर्याप्त नहीं है , उसे सही रास्ते पर ले जाने के लिए कुछ कठोर निर्णय भी लेने होंगे । विचारों की कैद में फँसे मन को वहाँ से निकालकर उसे स्वतः एक कठोर शासक की तरह प्रताड़ित एवं दण्डित करना भी आवश्यक होता है । अतः हमें सदैव मन के अधोगामी ( नीचे की ओर गमन करना ) होने की दशा में बड़ी सतर्कता से मन को संभाल कर ऊर्ध्वगामी ( ऊपर की ओर जाना ) बनाना होगा । नीचे गिरना या अध : पतन तो बहुत सरल है , किन्तु ऊपर उठने के लिए दूना प्रयास करना पड़ता है ।

इसलिए बड़ी मुस्तैदी से मनोविकारों पर कडी दृष्टि रखते हुए मनोनिग्रह का सत्प्रयास किया जाना चाहिये । छोटी - छोटी बातों में फिसल जाना , चलो कोई बात नहीं आज रहने दें । थोड़ी देर मनोविनोद ही सही  कल से फिर सँभालेंगे , ऐसे प्रमादी विचार मन को पतनोन्मुखी बनाते हैं और फिर कभी संभलने का मौका हाथ नहीं आ पाता । ऐसी ढील कदापि नहीं दी जानी चाहिए ।

4- संयम-नियम का होना - 
Restrain law
चतुर्विध संयम - (संयम चार प्रकार के माने गये है--
( १ ) इन्द्रिय संयम 
( २ ) समय संयम 
( ३ ) अर्थ संयम 
( ४ ) विचार संयम 

इन चारों का निरंतर अभ्यास किया जाना चाहिये तथा समझदारी , ईमानदारी , जिम्मेदारी एवं बहादुरी से सभी श्रेष्ठ कार्यक्रमों को जीवन में लाग किया जाये । किसी भी कार्य के केवल समीपवर्ती क्षणिक सुख या लाभ पर दष्टि न रखकर दूरगामी परिणाम पर भी विचार करना चाहिये । व्यक्तिगत हित और लोकहित दोनों को ध्यान में रखकर तब मन को किसी कार्य में लगाया जाय ।

मन यदि कुविचारों की तरफ जबरदस्ती भागने की कोशिश करे तो उसे संयम नियम के सतत् अभ्यास से रोका जाया बुद्धि और विवेकपूर्वक मन को वश में करके उसे श्रेष्ठ कार्यों में लगाया जाय । मन को रोकना ही काफी नहीं उसे पुनः गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिए मन को सत्प्रवृत्तियों में लगाए रखना , सद्कों से जोड़े रखना भी आवश्यक है । निषेधात्मक प्रयास यह न करो तथा विधेयात्मक प्रयास यह करो इन दोनों का ही प्रयोग किया जाना चाहिये ।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य---

0 comments: