Sunday 19 July 2020

श्रीमद्भगवद्गीता के 11 ज्ञानवर्धक श्लोक जिसमें छुपा है जीवन का रहस्य // 11 enlightening verses of Srimad Bhagavad Gita, in which the secret of life is hidden

श्रीमद्भगवद्गीता के 11 ज्ञानवर्धक श्लोक जिसमें छुपा है जीवन का रहस्य
11 enlightening verses of Srimad Bhagavad Gita, in which the secret of life is hidden

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नमस्कार दोस्तों हम बात कर रहे है, secret of geeta in hindi भारत की सनातन संस्कृति में श्रीमद्भगवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुकरणीय भी है। श्रीकृष्ण आधारित  इस ग्रंथ में उल्लिखित उपदेश इसके 18 अध्याय है,जिनमें लगभग 720 श्लोकों में हैं। और इन्हीं श्लोकों मे समस्त सृष्टि का ज्ञान छिपा हुआ है, श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया के वैसे श्रेष्ठ ग्रंथों में है, Bhagwatgeeta shloks in hindi जो न केवल सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है, बल्कि कही और सुनी भी जाती है।आज लगभग हर देश ने गीता को अपनी भाषा में अनुवाद करके इसे सर्वोपरि स्थान दिया है। कहते हैं जीवन के हर पहलू को गीता से जोड़कर व्याख्या की जा सकती है। secret of geeta in hindi आज हम आपको 11 ऐसे श्लोकों का महत्त्व बतायेंगे जो हर मनुष्य का जीवन बदल सकते हैं।और यह हमें आगे बडने का हाॅसला भी देते है,और यही श्लोक हमारी सफलता का माध्यम व मार्गदर्शक भी बनते है। आइए हम आपको बताते हैं इन श्लोकों का मतलब...

secret of geeta in hindi 

श्लोक -1
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः |
स्त्रीषु दु अटासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः ||
                   (अध्याय-1,श्लोक-41)
अर्थात -
पाप के अधिक बढ जाने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं, और हे वार्ष्णेय। स्त्रियों के दूषित होने पर वर्ण संकर उत्पन्न होता है ।

श्लोक - 2
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ||
        (अध्याय-2,श्लोक-22)
अर्थात -
यदि तू कहे कि मै तो शरीरों के वियोग का शोक करता हूँ, तो यह भी उचित नहीं है, क्योंकि जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है,वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है।


secret of geeta in hindi 

श्लोक - 3
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन  |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ||
         (अध्याय-2, श्लोक-47)
अर्थात -
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, फल में कभी नहीं और तू कर्मों के फल की वासना वाला भी मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी प्रीती न होवे ।

श्लोक -4
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः |
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ||
              (अध्याय-2, श्लोक-71)
अर्थात - 
जो पुरूष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममता रहित और अहंकार रहित ,स्पृह रहित हुआ बर्तता है, वह शान्ति को प्राप्त होता है।

श्लोक -5
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः |
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ||
              (अध्याय-3,श्लोक-31)
अर्थात - 
जो कोई भी मनुष्य दोष बुद्धि से रहित और श्रद्धा से युक्त हुए सदा ही मेरे इस मत के अनुसार बर्तते है,वे पुरूष सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते है ।


secret of geeta in hindi 

श्लोक -6
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ||
          (अध्याय-4, श्लोक-11)
अर्थात -  
जो मेरे को जैसे भजते हैं, मैं भी उनको वैसे ही भजता हूँ, इस रहस्य को जानकर ही बुद्धिमान मनुष्य सब प्रकार से मेरे मार्ग के अनुसार बर्तते है।

श्लोक -7
अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः |
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ||
            (अध्याय-4, श्लोक-36)
अर्थात -
यदि तू सब पापियों सेशभी अधिक पाप करने वाला है तो भी ज्ञान रूप नौका द्वारा निःसंदेह सम्पूर्ण पापों को अच्छी प्रकार तर जाएगा।

श्लोक - 8
सन्न्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ |
तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ||
               (अध्याय-5,श्लोक-2)
अर्थात -
जो पुरूष न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है,वह निष्काम कर्मयोगी सदा सन्यासी ही समझने योग्य है, क्योंकि राग-द्वेषादि द्वंद्वों से रहित हुआ पुरुष सुखपूर्वक संसाररूप बन्धन से मुक्त होजाता है।

श्लोक - 9- 
शक्रोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् | 
कामक्रोधोद्भवं वेगं सः युक्तः स सुखी नरः ||
           (अध्याय-5, श्लोक-23)
अर्थात - 
जो मनुष्य शरीर के नाश होने से पहले ही काम और क्रोध से उत्पन्न हुए वेग को सहन करने में समर्थ है,अर्थात काम-क्रोध को जिसने सदा के लिए जीत लिया है, वह मनुष्य इस लोक में योगीहै,और वही सुखी है।


secret of geeta in hindi 

श्लोक -10
सुह्रन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु     |
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ||
         (अध्याय-5,श्लोक-9)
अर्थात-
जो पुरूष सुहृद् ,मित्र, वैरी,उदासीन, मध्यस्थ, द्वेषी और बन्धुगणों में तथा धर्मात्माओं में और पापियों में भी समान भाव वाला है,वह अति श्रेष्ठ है ।

श्लोक -11
अन्तकाले च मामेव स्मन्मुक्त्वा कलेवरम् |
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ||
            (अध्याय-8,श्लोक-5)
अर्थात -
जो पुरूष अन्त समय में मेरे को ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है ,वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है,इसमें कुछ भी संशय नहीं है।

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