Wednesday 6 May 2020

हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त परिचय (भाग-8) भक्तिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियाँ व विशेषताएँ ,Trends and characteristics of devotional literature

हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त परिचय (भाग-8)
भक्तिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियाँ व विशेषताएँ 
Brief Introduction to Hindi Literature (Part-8)
Trends and characteristics of devotional literature

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भक्तिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियाँ / विशेषताएँ--

भक्तिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियों अथवा विशेषताओं को निम्न बिदुआ द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है ---

1- भक्तिभावना की प्रधानता - 
भक्तिकाल में भक्त कवियों का साधन तथा साध्य ‘ भक्ति ' ही रही । भक्तिभावना का प्राधान्य तयुगीन सभी काव्यधाराआ . ज्ञानमार्गी धारा , प्रेममार्गी धारा , रामभक्तिधारा , कृष्णभक्तिधारा में मिलता है । ज्ञानमार्गी भक्तों ने दाम्पत्य भाव से ज्ञान के द्वारा , प्रेमाश्रयी कवियों ने प्रेम के द्वारा , रामभक्तों ने दास्य भाव से तथा कृष्णभक्तों ने सख्य एवं माधुर्य भाव से ईश्वर के प्रति , अपने भक्ति - भाव को प्रकट किया है ।

2- गुरु की महत्ता (महत्व)- 
भक्तिकाल के सभी कवियों ने गुरु की महिमा को स्वीकार किया है तथा उसका विविध रूपों में बखान भी किया है । गुरु की महत्ता के मूल में पूर्ववर्ती संस्कृत साहित्य का संस्कार तो था ही , साथ में ईश्वर प्राप्ति हेतु साधना भी रही । बिना गुरु ज्ञान अथवा मार्गदर्शन के साधना की सफलता संदिग्ध रहती है । अत : इन कवियों ने गुरु की महत्ता का गुणगान किया ।

3- समन्वय की भावना - 
भक्तिकाल में विविध विषयों का , विविध साधना पद्धतियों का , विभिन्न देवी - देवताओं की पूजा अर्चना का , अभिव्यक्ति हेतु भिन्न - भिन्न प्रकार की भाषा आदि का समन्वय सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है । इसके अतिरिक्त जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे - वैयक्तिक , सामाजिक - सांस्कृतिक , धार्मिक और दार्शनिक आदि में सर्वत्र समन्वय की भावना का प्रचार करते मिलते हैं वहीं दूसरी और गोस्वामी तुलसीदास अजामिल , गीध , गणिका तथा शबरी जैसे निम्न पात्रों के साथ सूर्यवंशी राम का मिलाप दिखाकर समन्वय भावना का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करते हैं ।

4-  मानवता की प्रतिष्ठा (मानवतावाद) - -
साईं के सब जीव हैं , कीरी कुंजर दीय ' प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कबीरदास जी ने , श्रीकृष्ण के साथ ग्वाल - बालों की घनिष्ठता द्वारा सूरदास जी ने , निषाद तथा शबरी आदि के साथ श्रीराम की आत्मीयता द्वारा तुलसीदास जी ने तथा राजकुमारी पद्मावती के साथ सामान्य जाति की सखियों की आत्मीयता द्वारा जायसी आदि भक्तिकालीन के कवियों ने अनेक स्थानों पर जात - पात तथा ऊँच - नीच के मध्य की खाई को मेटकर मानव का मानव के प्रति प्रेम स्थापित करने का प्रयास किया है ।

5- नाम स्मरण की महत्ता - 
तुलसीदास जी ने ' कलियुग केवल नाम अधारा , सुमिर सुमिरनर उतरहिं पारा ' के द्वारा , जायसी ने - ' सुमिरौ आदि एक करतारू । जेहि जिउ दीन्ह - कीन्ह संसारू । ' के द्वारा , तथा कबीरदास जी ने – ' राम नाम तत सार है ' आदि के द्वारा नाम की महत्ता का ही प्रतिपादन किया है । नवधा भक्ति में भजन , कीर्तन , पाद सेवन , कथा श्रवण के साथ ही नाम - स्मरण को भी ईश्वर प्राप्ति का साधन माना गया है । इसलिए भक्तिकाल की सभी काव्यधाराओं में कवियों ने . जन - सामान्य को नाम स्मरण का अवलंब प्रदान किया , जिसके माध्यम से जन - सामान्य भी सांसारिकता से अलौकिकता की राह पा सकता है । आज भी विभिन्न धर्मावलंबियों में नाम - स्मरण का महत्त्व सर्वविदित है ।

6- जन - सामान्य का मार्गदर्शन - 
भक्तिकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जन - सामान्य का चहुँमुखी मार्गदर्शन किया । अहंकार का त्याग , आत्मसमर्पण की भावना तथा मानवता की प्रतिष्ठा आदि ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें हैं जिनके माध्यम से व्यक्ति नीति के साथ - साथ धर्म , अर्थ , काम तथा मोक्ष को प्राप्त करने में भी सक्षम बनता है ।

7- विविधमुखी साहित्य -
भक्तिकाल में प्रधानता यद्यपि भक्ति भावना से ओतप्रोत साहित्य की रही तथापि वीरकाव्य , नीतिकाव्य , तथा प्रकृति आदि से संबद्ध रचनाओं की भी प्रचरता मिलती है । इससे यह भी स्पष्ट होता है कि प्रत्येक काल में परंपरा तथा नूतनता न्यूनाधिक विद्यमान रहती है ।

8- अभिव्यक्ति उत्कृष्टता - 
भक्तिकाल में रचित साहित्य के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह काव्य जनमानस का काव्य है , जिसकी अभिव्यक्ति हेतु लोकभाषा अधवा जन सामान्य द्वारा व्यवहत जन भाषा का ही प्रयोग किया गया । भक्तिकाल के कवियों को अभिव्यक्ति का सबसे उत्कृष्ट पक्ष यह है कि उसमें पांडित्य प्रदर्शन कहीं भी नहीं मिलता , जो कुछ जैसा है वैसा ही कहकर ये कवि आगे चल दिये । इन कवियों की भाषा में पंजाबी . अवधी . ब्रज , अरबी , फारसी , उर्दू तथा संस्कृत आदि अनेक भाषाओं तथा बोलियों का मिश्रण मिलता है , जिससे रामचरितमानस , सूरसागर तथा पद्मावत जैसी अमूल्य रचनाएँ सामने आयी । इन कवियों की भाषा की भाति छंद तथा अलंकारों का सहज प्रयोग भी अभिव्यक्ति उत्कृष्टता के उदाहरण है ।

9- काव्यरूप - 
भक्तिकाल में महाकाव्य , चरितकाव्य , खंडकाव्य तथा मुक्तक रचनाओं की विविधता सर्वत्र देखी जा सकती है । भक्तिकाल में रचित गीतिकाव्य आज भी उतनी ही तन्मयता तथा आत्मानुभूति से जन - सामान्य में प्रचलित है ।

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