Tuesday 5 May 2020

हिन्दी साहित्य का इतिहास एवं संक्षिप्त परिचय (भाग-4) आदिकाल का नामकरण,Adikal naming

हिन्दी साहित्य का इतिहास एवं संक्षिप्त परिचय (भाग-4)
आदिकाल का नामकरण
History and Brief Introduction to Hindi Literature (Part-4)
Adikal naming

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आदिकाल-नामकरण --

आदिकाल के काल - निर्धारण की भांति इसके नामकरण का प्रश्न । विवादास्पद रहा है --
1- ग्रियर्सन - चारणकाल
2- मिश्रबंधु - प्रारंभिक काल
3- रामचन्द्र शुक्ल - वीरगाथा काल 
4- राहुल सांकृत्यायन - सिद्धसामंतकाल
5- महावीरप्रसाद द्विवेदी - बीजवपनकाल
6- विश्वनाथप्रसाद मिश्र - वीरकाल 
7- हजारीप्रसाद द्विवेदी -आदिकाल
8- रमाशंकर शुक्ल ' रसाल ' -  आदिकाल
9- रामकुमार वर्मा - संधिकाल एवं चारणकाल

यहाँ संक्षेप में उपर्युक्त नामकरणों पर विचार करना उचित होगा --

1- चारणकाल -

यह ग्रियर्सन का दिया हआ नाम है । जार्ज ग्रियर्सन पहल इतिहासकार हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य के काल विभाजन तथा नामकरण का किया । ग्रियर्सन द्वारा दिया गया ' चारणकाल ' नाम सर्वथा उपयुक्त नहीं है । उन्होंने चारणकाल का समय 643 ई . से माना है जबकि इतिहास में 1000ई . चारण कवियों द्वारा लिखित किसी भी रचना का उल्लेख नहीं मिलता ।

2- प्रारंभिक काल -
यह नाम मिश्रबंधुओं द्वारा दिया गया । उन्होंने इसकी समय - सीमा 643ई . से 1387ई . तक निर्धारित की । आलोच्य नाम एक सामान्य संज्ञा का बोधक है उसके पीछे न तो किसी साहित्यिक प्रवृत्ति का आधार मिलता है और न ही कोई विशेष तर्क । यह नामकरण केवल हिंदी भाषा के आरम्भ का संकेत मात्र ही करता है । इसलिए अधिक मान्य नहीं हुआ ।

3- वीरगाथाकाल -
शुक्ल जी ने विक्रमी संवत् 1050 ई . 1375 तक की कालावधि को ' वीरगाथा काल ' के नाम से अभिहीत किया है । प्रस्तुत नामकरण के मूल में उन्होंने जनता की चित्तवृत्तियों के साथ कवि की मनोवृत्तियों के परिवर्तनों को आधार बनाया है । यद्यपि यह नाम अधिकाधिक तार्किक तथा मान्य हुआ , किंतु कहीं न कहीं इसकी परिधि वीरगाथात्मक रचनाओं तक ही संकीर्ण हो जाती है । इसके अतिरिक्त आलोच्य काल में रचित नीति , भक्ति , प्रकृति तथा शृंगार आदि से सम्बद्ध रचनाएँ उपेक्षित हो जाती है ।

4- सिद्धसामंतकाल -
प्रस्तुत नामकरण राहुल सांकृत्यायन द्वारा प्रदत्त है इसके - मूल में उनका तर्क है कि - " इस काल खंड के जीवन तथा समाज पर सिद्धों का और राजनीति पर सामंतों का एकाधिकार था । युगीन कवियों ने अपनी रचनाओं में सामंतों का यशोगान ही प्रमुख रूप से किया है । ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यों में इस कालखंड की अतः बाह्य परिस्थितियों का अध्ययन करने पर भी उपर्युक्त दोनों वर्गों का दबदबा ही प्रमुख पाते हैं । काव्यों में भी प्रमुखतः सामंती वातावरण को ही रूपाकार दिया गया है । शृंगार आदि की प्रवृत्तियों का भी संबंध उन्हीं से है । " यहाँ ध्यातव्य है कि आलोच्य नामकरण तयुगीन वातावरण अथवा परिस्थितियों को अधिकाधिक उजागर कर रहा है किंतु इससे किसी साहित्यिक प्रवृत्ति का उद्घाटन नहीं हो पाता और सिद्धों के अतिरिक्त नाथपंथी तथा हठयोगी कवि भी उपेक्षित रह जाते हैं ।

5- बीजवपनकाल -
द्विवेदी जी द्वारा प्रदत्त नामकरण से शैशवावस्था का बोध होता है । भाषिक दृष्टि से तो यह हिंदी भाषा की शैशवावस्था का काल हो सकता है किंतु विविध आयामी साहित्यिक प्रौढ़ता का वहाँ अभाव नहीं कहा जा सकता ।

6- वीरकाल -
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा दिया गया प्रस्तुत नाम न्यूनाधिक आचार्य शुक्ल के वीरगाथाकाल का ही यथावत रूपांतरण कहा जा सकता है किसी प्रकार की नवीनता इसमें दृष्टिगत नहीं होती ।

7- आदिकाल -
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा दिए गए ' आदिकाल ' नामकरण को सर्वाधिक विद्वानों ने उपर्युक्त तथा तर्कसंगत माना है । प्रस्तुत नामकरण की अवधारणा को स्पष्ट करते हए द्विवेदी जी ने लिखा है - " हिदी का आदिकाल शब्द एक प्रकार की भ्रामक धारणा की सृष्टि करता है और श्रोता के चित्त में यह भाव पैदा करता है कि यह काल कोई आदिम मनोभावापन्न परंपराविनिर्मुक्त काव्य रूढ़ियों से अछूते साहित्य का काल है । यह ठीक नहीं है ।

यह काल बहुत अधिक परम्परा प्रेमी , रूढ़िग्रस्त और सचेत कवियों का काल है । " उपर्युक्त नामकरण की परिधि में आलोच्य युग की भाषा , भाव , अनेक विषय तथा आगामी साहित्य की पृष्ठभूमि आदि अनेक बिन्दुओं का समावेश सहज ही हो जाता है । प्रस्तुत नामकरण की सार्थकता , उपयुक्तता तथा अधिकाधिक स्वीकार्यता का उल्लेख करते हुए डॉ . रामगोपाल शर्मा ' दिनेश ' लिखते हैं - " वास्तव में ' आदिकाल ' ही ऐसा नाम है जिसे किसी न किसी रूप में सभी इतिहासकारों ने स्वीकार किया है तथा जिससे हिंदी साहित्य के इतिहास की भाषा , भाव , विचारणा , शिल्प - भेद आदि से सम्बद्ध सभी गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं । इस नाम से उस व्यापक पृष्ठ भूमि का बोध होता है , जिस पर आगे का साहित्य खड़ा है । भाषा की दृष्टि से हम इस काल के साहित्य में हिंदी के आदि - रूप का बोध पा सकते हैं तो भाव की दृष्टि से इसमें भक्तिकाल से आधुनिक काल तक की सभी प्रमुख प्रवृत्तियों के आदिम बीज खोज सकते हैं । . . . अतः ' आदिकाल ' ही सबसे अधिक उपयुक्त एवं व्यापक नाम है ।

8- संधिकाल एवं चारणकाल -
यह नाम डॉ . रामकुमार वर्मा द्वारा दिया गया है जिसमें उन्होंने आदिकाल को दो खण्डों में विभक्त कर दिया है । जहाँ संधिकाल नाम भाषा तथा भाव की ओर संकेत करता है वहीं चारणकाल नाम एक वर्ग विशेष तक ही सीमित रहने का संकेत करता है । स्पष्ट उपर्युक्त दोनों नाम मिलकर भी किसी साहित्यिक प्रवृत्ति की ओर अथवा किसी ठोस आधार की ओर संकेत नहीं करते । इसलिए अधिकांश विद्वानों ने उपर्युक्त नामकरण को अनुपयुक्त तथा अतार्किक माना है । आलोच्य काल के नामकरण के सम्बन्ध में उपर्युक्त विवेचन - विश्लेषण के उपरान्त कहा जा सकता है कि इस दिशा में सभा विद्वानों के प्रयास गम्भीर चिंतन का परिणाम हैं । किंतु उनमें कहीं न कहा सम्पूर्णता का अभाव निहित है । इनमें आचार्य शुक्ल तथा हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा दिया गया ' आदिकाल ' नाम ही ऐसा है जिसमें आलोच्य युग के नाम की पूर्णता निहित है ।

9- आदिकालीन साहित्य - 
आदिकाल में हिंदी - साहित्य के साथ - साथ पूर्ववता संस्कृत तथा अपभ्रंश साहित्य की भी रचना हो रही थी । डॉ . रामगोपाल शमा क शब्दों में - " संस्कृत - साहित्य का तो सामान्य जनता तथा हिंदी - कवियों पर उता प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ रहा था । किंतु अपभ्रंश - साहित्य भाषा की निकटता क कारण हिंदी साहित्य के लिए निरंतर साथ चलने वाली पालभमि का काम कर रहा था।

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